संध्या रायचौधरी
बचपन से ही बेटी की राय जानें और छोटे – छोटे निर्णय उसे खुद लेने दें ताकि वह डिसीजन मेकिंग पर्सन बन सके। सही और गलत की पहचान कराने के लिए कई बार उसे ठोकर भी खाने दें। इसलिए उसे गलती करने दें और उसका परिणाम भुगतने दें। उसके बाद उसे समझाएं . मां ही अपनी बेटी को गलत निगाहों का और गलत स्पर्श का अर्थ समझा सकती है ।
चूंकि हमारे समाज पर अब भी पुरुषवाद हावी है, इसलिए यहां ऐसे ही कार्यों व तरीकों को मंजूरी मिलती है, जो मर्दों को संतुष्ट करते हैं। आज भी भारत के लगभग हर घर में यही सोच कायम है कि लड़की चाहे कितनी भी ऊंचाइयों को छू ले, लेकिन वह पुरुष की बराबरी नहीं कर सकती। जबकि पुरुषों के मामले में यह धारणा विपरीत है। पुरुष चाहे कितना भी असभ्य, अशिक्षित हो, लेकिन उसे हर हाल में स्त्री से ऊपर ठहराया जाता है। यही नजरिया पुरुषों में यह धारणा विकसित करता है कि वे महिला के लिए सर्वेसर्वा हैं और एक महिला का जीवन बिना उनके अधूरा है—— ——
यह सच है कि स्त्री व पुरुष, दोनों का एक-दूसरे के बिना जीवन अधूरा है लेकिन यह सोच गलत है कि अगर पुरुष के जीवन में स्त्री नहीं है तो वह बाहर से अपनी उस कमी को पूरा कर सकता है लेकिन स्त्री यदि कुंवारी है, विधवा है, तलाकशुदा है तो उसके जीवन में किसी पुरुष का प्रवेश वर्जित है।
चुप रहकर अपने पति की तरफदारी
स्त्री आधुनिक व सुशिक्षित होने पर भी पति को देवता ही मानती है। यही नहीं, जब वह स्वयं मां बनती है तो अपने बेटे व बेटी के पालन-पोषण में भी भेदभाव करती है। बेटे को कदम-कदम पर यही सिखाया जाता है कि उसके लिए उसका अहं व पुरुषत्व ही सब कुछ है। भावुक पुरुष और ताकतवर महिला, दोनों का ही मजाक बनाया जाता है।
हर मां चाहती है कि उसकी बेटी को कभी भी अश्लील फब्तियों या छेड़छाड़ का सामना न करना पड़े , इसलिए वह उसे बचपन से नसीहत देती है कि वह संभल कर रहे, देर रात तक बाहर न रहे, पुरुषों से संयमित व्यवहार करे। मांएं अपनी बेटी को यह नहीं सिखातीं कि यदि उनकी बेटी दुर्भाग्यवश ऐसी परिस्थितियों में फंस जाए, तो वह स्वयं को कैसे बचाए। जबकि उन्हें अपनी बेटी को विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला करने की शिक्षा देनी चाहिए। उसे यह सिखाना चाहिए कि यदि उसके जीवन में कोई अनहोनी हो जाती है तो वह अपने जीवन को समाप्त न समझे, बल्कि हौसले व हिम्मत से उसका मुकाबला करके उस मुसीबत व दुर्घटना को अंगूठा दिखाते हुए यह कहे कि मैं तुमसे ज्यादा ताकतवर हूं।
मान-सम्मान उसके जीवन से कीमती?
हमारे समाज में बेटी के मान-सम्मान को उसके जीवन से कीमती समझा जाता है। यह मान-सम्मान जब तार-तार हो जाता है तो उसकी जिंदगी का अंत मान लिया जाता है। इस मानसिकता से उबरना होगा। यह मान-सम्मान दरअसल पुरुषवाद का एक ढकोसला है जिसके जरिए स्त्री को एक दायरे में बांधने की कोशिश की गई है। जब एक बेटी सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर चढ़ सकती है, अंतरिक्ष में अपना परचम फहरा सकती है, व्यवसाय की बुलंदियों तक पहुंच सकती है तो वह छेड़छाड़ का विरोध भी सहजता से कर सकती है। यदि छेड़छाड़ को हल्के में न लेकर गंभीरता से लिया जाएगा, तो ऐसी हरकतों पर लगाम लगने के साथ ही बलात्कार की घटनाएं भी कम होंगी। इसके साथ ही मांओं को अपने बेटे की गलती पर पर्दा डालने के बजाय उसे समाज के सामने बेनकाब करने का साहस दिखाना होगा।
कदम–कदम पर बेटी को समझाइश
बेटियों को लेकर मां सदैव सतर्क, सावधान और संशकित रहती है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि जो दुनिया मां ने देखी है उससे कहीं बुरी दुनिया आज की है। इसलिए कदम-कदम पर मां अपनी बेटी को समझाइश देती जाती है। एक मां को एक साथ कई तरह की भूमिकाएं निभानी पड़ती है। उसकी सहेली बनकर, उसकी पथ प्रदर्शक बनकर और कभी-कभी उसकी आलोचक बनकर। बचपन से ही बेटी की राय जानें और छोटे – छोटे निर्णय उसे खुद लेने दें ताकि वह डिसीजन मेकिंग पर्सन बन सके। सही और गलत की पहचान कराने के लिए कई बार उसे ठोकर भी खाने दें। इसलिए उसे गलती करने दें और उसका परिणाम भुगतने दें। उसके बाद उसे समझाएं . मां ही अपनी बेटी को गलत निगाहों का और गलत स्पर्श का अर्थ समझा सकती है । इसका पाठ अपने घर-परिवार , नाते-रिश्तेदार और आस-पड़ोस के लोगों के साथ समझा जा सकता है क्योंकि अच्छा स्पर्श और बुरा स्पर्श क्या होता है यह जानना किसी भी लडक़ी के लिए अक्षर ज्ञान से पहले जरूरी है। मां को विशेषकर अपनी बेटी को उसकी शारीरिक रचना के बारे में जरूर बताना चाहिए कि अपने माता-पिता, बहन-भाई के साथ प्यार से गले मिलना, दोस्तों के साथ हाथ मिलाना या ऐसा कोई भी स्पर्श जो प्यार भरा हो, वह अच्छा है परन्तु कोई भी स्पर्श जो अप्रिय हो, जिसके बाद बेचैनी हो वह गंदा स्पर्श है और उसे स्वीकार करना गलत है।