एक स्टडी मे बताया गया है ग्रेटर हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने से भारी तबाही आ सकती है. जबकि अब तक इस नुकसान को काफी कम करके आंका गया है. ग्लेशियरों में बनी बर्फ की झीलें धरती पर विनाश ला सकती है.
ग्लेशियर के नुकसान से प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ा (फाइल फोटो)
नेचर जियोसाइंस जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी में ग्लेशियरों को लेकर बड़ी चेतावनी दी गई है. इसमें बताया गया है ग्रेटर हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने से भारी तबाही आ सकती है. जबकि इस नुकसान को काफी कम करके आंका गया है. इसमें बताया गया कि ग्लेशियर के पिघलने से कई बर्फ की झीलें बन गई हैं जो कभी भी भारी तबाही ला सकती हैं.
रिसर्चस ने पाया कि पिछले आकलनों में ग्लेशियरों से होने वाले कुल नुकसान को 6.5 फीसदी करके आंका गया था. ये स्टडी चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज, ग्राज यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी (ऑस्ट्रिया), यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट एंड्रयूज (यूके) और कार्नेगी मेलॉन यूनिवर्सिटी (यूएसए) के रिसर्चस समेत एक इंटरनेशनल टीम द्वारा की गई है.
मध्य हिमालय क्षेत्र में तेजी से बनी झीलें
रिसर्चस का दावा है मध्य हिमालय क्षेत्र का सबसे गलत आकलन किया गया. यहां ग्लेशियर से बनने वाली झीलों को तेजी से विकास हुआ. गैलॉन्ग कंपनी का मामला काफी रोचक है. क्योंकि इसे 65 फीसदी ज्यादा नुकसान का आकलन किया गया है. साल 2000 से 2020 के दौरान ग्लेशियर से पिघलकर बनीं झीलों की संख्या में 47 फीसदी की वृद्धि हुई. जबकि क्षेत्रफल में 33 और आयतन में 42 फीसदी की हुई वृद्धि हुई. इस विस्तार के परिणास्वरूप ग्लेशियरों को 2.7 गीगाटन का नुकसान हुआ, जो दुनिया में हाथियों की संख्या से 1000 गुना से ज्यादा है.
ग्लेशियर के नुकसान से प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ा
ग्लेशियर के नुकसान से प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी बढ़ सकता है. ग्लेशियर से बनी झीलों के फटने से बाढ़ आ सकती है. खासकर तब जब बर्फ का पिघला पानी ग्लेशियर और उसके पीछे बनी चट्टानों परजमा हो जाता है. इसके बाद जब ये झील फटती है तो नीचे की तरह भयावह बाढ़ आ जाती है.
इस तरह की घटनाओं से भारी विनाश हो सकता है. इसके अलावा ये ग्लेशियर समुद्र का जलस्तर काफी बढ़ा सकते हैं. ग्लेशियर के नुकसान से ग्लोबल क्लाइमेट सिस्टम भी प्रभावित होगा. क्योंकि ग्लेशियर सूर्य की रोशनी को वापस स्पेस में भेजते हैं. जिससे ग्रह को ठंडा करने में मदद मिलती है.
नुकसान का कम आकलन क्यों हुआ?
पिछली स्टडीज में जिन उपग्रह डेटा का इस्तेमाल किया गया था. वो केवल झील के पानी की सतह की माप सकते थे. लेकिन बर्फ के नीचे के पानी का पता नहीं लगा सकते थे. इसलिए नुकसान का सही आकलन नहीं हो पाया. स्टडी में इस बात पर पर प्रकाश डाला गया है कि ग्लेशियर के बड़े पैमाने पर नुकसान और ग्लोबल स्तर पर झील को समाप्त करने वाले ग्लेशियरों के बड़े पैमाने पर नुकसान को समझने की जरूरत है.
क्लाइमेट चेंज की वजह से पिघल रहे हैं ग्लेशियर
क्लाइमेट चेंज की वजह से ग्लेशियरों को जो नुकसान हो रहा है उसका धरती पर प्रभाव पड़ रहा है. ग्लेशियर ग्लोबल क्लाइमेट और मौसम के पैर्टन को नियत्रिंत करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं. उनको नुकसान पहुंचने से बहुत बड़े पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक नुकसान भुगतने पड़े सकते हैं.
ग्लेशियर के नुकसान का सबसे ज्यादा प्रभाव उन जगहों पर पड़ेगा जो पीने के पानी के लिए ग्लेशियर पर निर्भर नदियों के भरोसे हैं. ऐसे लोग कृषि और हाइड्रोपावर के लिए भी इसी पर निर्भर हैं. खासकर शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में इससे पानी की कमी, खाद्य असुरक्षा और ऊर्जा की कमी हो सकती है.