टैक्स सेविंग्स का काम पूरा करने की आखिरी तारीख अब बस आ ही गई है. आपको निवेश 31 मार्च 2023 से पहले करना है, जो यह इनकम टैक्स बचाने के लिए सही निवेश का विकल्प चुनने का अहम समय है.
टैक्स सेविंग्स का काम पूरा करने की आखिरी तारीख जल्द करीब आ रही है.
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टैक्स सेविंग्स का काम पूरा करने की आखिरी तारीख अब बस आ ही गई है. आपको निवेश 31 मार्च 2023 से पहले करना है, जो यह इनकम टैक्स बचाने के लिए सही निवेश का विकल्प चुनने का अहम समय है. अगर व्यक्ति गलत टैक्स सेविंग का विकल्प चुन लेता है, तो वह फंस सकता है और इसमें नुकसान भी झेलना पड़ सकता है.
इन बातों का रखें ध्यान
हर टैक्स सेविंग के ऑप्शन को कुछ मापदंडों पर देखा जाना चाहिए, जिससे यह पता चल सके कि यह आपके लिए सही ऑप्शन है या नहीं. इनमें रिटर्न, सेफ्टी, लिक्विडिटी, होल्डिंग पीरियड और टैक्सेशन जैसी चीजों पर आकलन किया जाना चाहिए. जो निवेश का विकल्प इन चीजों पर खरा उतरता है, उसे बेहतर माना जाता है.
उदाहरण के लिए, पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF) से मिलने वाला ब्याज और मैच्योरिटी पर टैक्स से छूट होती है. हालांकि, पीपीएफ में 15 साल का लॉक इन पीरियड होता है, जिससे लिक्विडिटी में भी दिक्कत होती है. ऐसी लंबी अवधि कुछ लोगों के लिए काम कर सकती है. लेकिन सभी लोगों के लिए यह सही नहीं है.
ये ऑप्शन आ सकते हैं काम
नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (NSC) या पांच साल की टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट (बैंक या पोस्ट ऑफिस के साथ) भी पांच साल के लॉक इन पीरियड के साथ आती है. इसके अलावा यहां कोई लिक्विडिटी नहीं है और कमाए गए ब्याज पर टैक्स लगता है. क्योंकि होल्डिंग पीरियड ज्यादा लंबा नहीं है, इसलिए बहुत से निवेशक टैक्स बेनेफिट हासिल करने के लिए पांच साल के लॉक इन पीरियड के साथ खुश हो सकते हैं.
इक्विडिटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ELSS) म्यूचुअल फंड्स में तीन साल का सबसे छोटा लॉक इन पीरियड होता है. और कैपिटल गेन्स पर टैक्स स्पेशल रेट्स पर लगता है. हालांकि, ELSS स्कीम्स इक्विटी शेयरों में निवेश करती है और इन्हें दूसरे टैक्स सेविंग ऑप्शन्स से ज्यादा जोखिम वाला समझा जाता है. इसके अलावा तीन साल के लॉक इन के दौरान प्रीमैच्योर विद्ड्रॉल की सुविधा भी नहीं होती है. हालांकि, लोगों को इनमें से कुछ ऑप्शन्स में निवेश करके टैक्स की बचत करेंगे. लेकिन अगर रिटर्न टैक्स फ्री नहीं होता है, तो उन्हें रिटर्न या कमाए गए ब्याज पर ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ सकता है. ऐसे मामलों में, टैक्स के बाद मिलने वाला रिटर्न कम हो जाएगा.