नई दिल्ली: मेंटल हेल्थ आजकल एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. सबसे बड़ी बात है कि मानसिक रोगों से पीड़ित व्यक्ति को पता भी नहीं चलता कि वह स्ट्रेस या डिप्रेशन की गिरफ्त में आ चुका है और धीरे-धीरे ये परेशानी उसे सुसाइड (Suicide) जैसे आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर कर देती है. ये जानकारी मानसिक रोगों से जूझ रहे लोगों ने खुद शेयर की है.
देशभर में मेंटल हेल्थ से जूझ रहे लोगों के लिए चलाई जा रही राष्ट्रीय हेल्पलाइन पर एक तिहाई कॉलर्स ने बताया है कि वे चिंता, अवसाद (Depression) और आत्मघाती विचारों से जूझ रहे हैं. इसके साथ ही एनसीआरबी (NCRB) के आंकड़े भी बताते हैं कि 2020 के मुकाबले 2021 में आत्महत्याओं का प्रतिशत 7.2 फीसदी बढ़ा है.
देशभर में निःशुल्क मानसिक स्वास्थ्य परामर्श प्रदाता, साइरस एंड प्रिया वंद्रेवाला फाउंडेशन का कहना है कि पिछले तीन महीनों (नवंबर 2022 से जनवरी 2023) में मेंटल हेल्थ से जूझ रहे कॉलर्स से की गई इस तरह की बातचीत लगभग 40 प्रतिशत तक पहुंच गई है. वहीं पिछले 18 महीनों (अगस्त 2021 से जनवरी 2023) में उनसे संपर्क करने और सलाह लेने वाले लोगों में कम से कम एक तिहाई लोगों ने बताया कि वे चिंता, अवसाद और आत्महत्या के विचारों से जूझ रहे हैं और इस संकट से निपटने के लिए उन्होंने पहले से ही मनोवैज्ञानिक हेल्प मांगी है.
इस बारे में प्रिया हीरानंदानी वंद्रेवाला ने बताया, ‘कितना अजीब है कि 2022 में भारत में हत्याओं और कोरोना वायरस से ज्यादा जानें आत्महत्या ने लीं. भले ही आज देश का हर मेडिकल छात्र मनोचिकित्सक बन गया हो लेकिन हमारे पास मानसिक स्वास्थ्य संकट को हल करने के लिए पर्याप्त लोग नहीं हैं.’