लोक विकास डेस्क। जॉइंट सबमरीन प्रोजेक्ट के तहत विदेशी सबमरीन निर्माता कंपनी को किसी भारतीय कंपनी के साथ पार्टनरशिप कर भारत में ही निर्माण करना होगा. भारत की शर्त है कि विदेशी कंपनी को तकनीक भी साझा करनी होगी. सैन्य ताकत में भारत का नाम दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल है. चाहे वो इंडियन आर्मी हो, इंडियन एयर फोर्स हो या फिर इंडियन नेवी. भारत लगातार अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहा है. इस क्रम में जर्मनी के साथ सबमरीन को लेकर एक डील करना चाहता है. दरअसल, इंडियन नेवी की 11 सबमरीन 20 साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी हैं, जिन्हें भारत बदलना चाहता है. जॉइंट सबमरीन प्रोजेक्ट इसी दिशा में भारत का एक अहम कदम बताया जा रहा है. इसमें जर्मनी ने रुचि दिखाई है. दोनों देशों के बीच संभावित यह डील करीब 520 करोड़ की है. शनिवार से जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स दो दिन के भारतीय दौरे पर आ रहे हैं. इस दौरान वो दिल्ली और बेंगलुरु जाएंगे.
फिलहाल भारत हथियारों के लिए काफी हद तक रूस पर निर्भर है. पश्चिमी देश चाहते हैं कि भारत की यह निर्भरता कम हो और इसलिए वो इस ओर इंटरेस्ट दिखा रहे हैं. अगर जर्मनी के साथ यह डील फाइनल होती है तो एक नई शुरुआत होगी.
क्या है जॉइंट सबमरीन प्रोजेक्ट?
भारत दशकों से विदेशी हथियारों का बड़ा खरीदार रहा है और इस स्थिति को बदलने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं. जैसे कि मेक इन इंडिया के तहत ज्यादातर हथियार देश में बनाने का फैसला. जॉइंट सबमरीन प्रोजेक्ट के तहत विदेशी सबमरीन निर्माता कंपनी को किसी भारतीय कंपनी के साथ पार्टनरशिप कर भारत में ही निर्माण करना होगा.
भारत की शर्त है कि विदेशी कंपनी को फ्यूल बेस्ड एयर इंडिपेंडेंट प्रॉपल्शन तकनीक भी साझा करनी होगी. इस कड़े शर्त के चलते ज्यादातर विदेशी कंपनियां इस डील के लिए आगे नहीं आई हैं. फिलहाल जर्मनी की कंपनी थाइसेनक्रुप मरीन सिस्टम (TKMS) समेत दो कंपनियों ने भारतीय सबमरीन प्रोजेक्ट के लिए दावेदारी पेश की है. कहा जा रहा है कि जर्मन चांसलर अपने भारत दौरे के दौरान इस डील का समर्थन करेंगे.
कई कंपनियां दौड़ से बाहर
फ्रांस की एक नेवल कंपनी ने मई 2022 में जॉइंट सबमरीन प्रोजेक्ट से अपना नाम वापस ले लिया था. कंपनी का कहना था कि वह भारत की शर्तें मानने में असमर्थ है. रिपोर्ट्स के अनुसार, रूस की कंपनी रोसोबोरोन एक्सपोर्ट और स्पेन की कंपनी नावंतिया ग्रुप भी दौड़ से बाहर हो चुकी हैं. अब रेस में केवल जर्मनी की कंपनी टीकेएमएस और साउथ कोरिया की कंपनी देवू शिपबिल्डिंग एंड सबमरीन इंजनियरिंग ही बचे हैं.
जर्मन कंपनी के साथ डील की संभावना
जर्मनी की कंपनी टीकेएमएस ने हाल ही में नॉर्वे के साथ छह सबमरीन बनाने का करार किया है. रॉयटर्स ने अपनी रिपोर्ट में सोर्स के हवाले से लिखा है कि जॉइंट प्रोजेक्ट का मतलब केवल सप्लाई सपोर्ट न हो, जर्मनी से भारत इस बात की गारंटी चाहता है.
हालांकि इस डील पर भारतीय विदेश और रक्षा मंत्रालय या फिर जर्मनी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. हालांकि जर्मन अधिकारियों के मुताबिक जर्मनी की गठबंधन सरकार में भारत को हथियार बेचने पर कोई मतभेद नहीं हैं. ऐसे में जर्मनी के साथ यह डील फाइनल होने की संभावना बन रही है.