तीन साल तक लगातार कोई घर में कैद रह सकता है? वो भी ऐसे कि तीन साल तक उसने सूरज ही न देखा हो? हरियाणा के गुरुग्राम में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें कोरोना के डर से 33 साल की महिला और उसके 11 साल के बेटे ने खुद पिछले तीन साल से कैद कर रखा था. महिला पर कोरोना का डर इतना हावी था कि वह अपने पति को भी घर में नहीं घुसने देती थी.
तीन साल तक लगातार कोई घर में कैद रह सकता है? वो भी ऐसे कि तीन साल तक उसने सूरज ही न देखा हो? हरियाणा के गुरुग्राम में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें कोरोना के डर से 33 साल की महिला और उसके 11 साल के बेटे ने खुद पिछले तीन साल से कैद कर रखा था. महिला पर कोरोना का डर इतना हावी था कि वह अपने पति को भी घर में नहीं घुसने देती थी.
महिला को रेस्क्यू कर अस्पताल में भर्ती कराया गया तो जांच में सामने आया कि उसे मनोवैज्ञानिक समस्याएं हैं. दोनों मां-बेटे का PGI रोहतक के मनोरोग वार्ड में इलाज चल रहा है, विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना का ऐसा डर एक प्रकार का फोबिया है जो बेहद खतरनाक है, यदि हालात कुछ दिन और ऐसे रहते तो कुछ भी हो सकता था. डर के इस लेवल पर पहुंचकर लोग न तो अपनी जान देने से हिचकते हैं और न ही किसी की जान लेने से.
क्या है कोरोना फोबिया
2020 में आई वैश्विक महामारी कोरोना का असर लोगों के दिलों-दिमाग में अब तक हावी है, डर इतना है कि लोग अभी तक इससे बाहर नहीं आ पा रहे हैं. अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने इस पर शोध कर इसे कोरोना फोबिया का नाम दिया था. ये फोबिया एक तरह का अवसाद है जो कोरोना के डर से पनप रहा है, इसमें बीमारी का शिकार होने का डर, अपने करीबी को खोने, नौकरी जाने और बेरोजगार होने का खतरा जुड़ा है.
जान की बाजी लगा सकते हैं पीड़ित
कोरोना से डर असीमित तौर पर बढ़ जाना फोबिया का ही उदाहरण है, कुछ लोगों में ये इतना बढ़ जाता है कि वे कोरोना के डर से पीछा छुड़ाने के लिए किसी को मार भी सकते हैं या फिर खुद भी जान की बाजी लगा सकते हैं. यदि इसके लक्षणों की बात करें तो इसमें तनाव, बेचैनी, हालात और लोगों से दूर भागना, कानों में अलग-अलग तरह की आवाज, तेज धड़कन, दर्द, चक्कर और हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
साइको थेरेपी है इलाज
कोरोना फोबिया का इलाज साइकोथेरेपी है, मनोचिकित्सक डॉ. राकेश के मुताबिक ऐसे लोगों का परीक्षण उनसे बातचीत के आधार पर होता है कि वे किस तरह की बात सोच रहे हैं. खासकर कोरोना के समय में ऐसे मामलों में ज्यादा तेजी देखने को मिली थी, लेकिन अब भी इक्का-दुक्का केस इस तरह के सामने आ रहे हैं, ऐसे लोगों को साइको थेरेपी की मदद से ठीक किया जाता है. यह मनोवैज्ञानिक उपचार का तरीका है, जिससे भावनात्मक तौर पर मरीज को मजबूत किया जाता है. जिससे मरीज समस्याओं से तनाव में न आए, बल्कि उनका हल खुद ढूंढे.
मामला क्यों चर्चा में
गुरुग्राम में स्वास्थ्य एवं बाल विकास कल्याण की एक टीम ने मां-बेटे को रेस्क्यू किया था, महिला का नाम मुनमुन माझी है, उसके पति सुजान माझी ने बताया कि 2020 में पहले लॉकडाउन के समय से मुनमुन बेटे के साथ घर में बंद है, सुजान के मुताबिक जब पहले लॉकडाउन में ढील मिलने के बाद काम करने के लिए बाहर निकला तो महिला ने उसे घर में एंट्री नहीं दी. इसके बाद से वह दूसरे घर में रहा. वह रोज महिला और उसके बेटे के लिए खाना पहुंचाता था, घर में कैद महिला इतनी डरी हुई थी कि उसने तीन साल तक सूरज ही नहीं देखा था.