लोकविकास डेस्क।न्यू स्टार्ट संधि से रूस ने जिस तरह किनारा करने की बात कही है, परमाणु हथियारों को लेकर अमेरिका के साथ उसकी होड़ फिर शुरू हो सकती है. डिटेल के लिए पढ़ें पूरी रिपोर्ट.रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने न्यू स्टार्ट संधि से खुद को अलग कर लिया है. अमेरिका और रूस के बीच यह संधि 2011 में हुई थी. इस संधि (New START Treaty) में START का मतलब Strategic Arms Reduction Treaty यानी नई सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि है. यह संधि 2026 तक के लिए बढ़ाई गई थी, लेकिन रूस ने करीब चार साल पहले ही यह संधि खत्म करने की घोषणा कर दी है.
दरअसल, पुतिन ने यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध को पश्चिमी देशों की उपज बताया और उन्हें रमाणु युद्ध की चेतावनी भी दे डाली. कहा कि रूस फिर से परमाणु परीक्षण शुरू कर सकता है. पश्चिमी देश रूस को खत्म करने में लगे हुए हैं, लेकिन युद्ध के मैदान में रूस को हराना नामुमकिन है. अमेरिका को चेतावनी देने हुए पुतिन ने कहा कि अमेरिका वैश्विक स्तर पर युद्ध भड़काने में लगा हुआ है. ऐसे में वो न्यू स्टार्ट ट्रिटी में अपनी भागीदारी सस्पेंड कर रहे हैं.
क्या है न्यू स्टार्ट संधि?
रूस और अमेरिका को विश्व की उन महाशक्तियों में माना जाता है, जो एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं. शीतयुद्ध के समय से ही दोनों दुश्मन हैं. दोनों ही देशों के बीच हर सेक्टर में कंपीटिशन देखा जाता है और दोनों ही देशों ने हजारों सामरिक विनाश के हथियार विकसित किए हैं. हथियारों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अमेरिका और रूस ने आपस में एक संधि की थी, जिसे न्यू स्टार्ट संधि का नाम दिया गया.
2010 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनके रूसी समकक्ष दिमित्री मेदवेदेव ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे और यह 2011 में लागू हुआ. शुरुआत में यह 10 वर्षों के लिए था. यानी इसकी अवधि 2021 में पूरी हो रही थी. 2021 में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पदभार ग्रहण के बाद इस संधि को पांच साल के लिए बढ़ा दिया, जिससे इस संधि की वैधता 2026 तक हो गई.
क्या था संधि का उद्देश्य?
अमेरिका और रूस दोनों ही परमाणु हथियार संपन्न देश हैं. दोनों कई वर्षों से लगातार परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ा रहे थे. ऐसे में इस का उद्देश्य परमाणु हथियारों की संख्या को 1550 तक सीमित करना था. इस संधि में कहा गया था कि अमेरिका और रूस दोनों देश अपने परमाणु हथियारों के जखीरे को सीमित रखेंगे. दोनों देशों ने ही 5 फरवरी, 2018 तक नई स्टार्ट संधि की सीमा पूरी कर ली थी. यह संधि सुनिश्चित करती है कि दोनों ही देश रणनीतिक परमाणु हथियार साइटों के 18 इंस्पेक्शन कर सकते हैं, जिसका कोई पक्ष अवहेलना नहीं करेगा.
न्यू स्टार्ट संधि के तहत अमेरिका और रूस 700 स्ट्रैटजिक हथियारों के लॉन्चर्स तैनात करने पर राजी हुए थे, जिसमें इंटर कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें (ICBMs), सबमरीन लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइलें (SLBMs) और परमाणु हथियारों से लैस भारी बमवर्षक विमान शामिल थे. कुल 1,550 परमाणु वॉरहेड तैनात करने पर सहमति बनी थी. चूंकि एक मिसाइल अपने साथ कई परमाणु वॉरहेड ले जा सकती है, सो ऐसे में मिसाइलों की संख्या कम और परमाणु वॉरहेड की संख्या ज्यादा हो सकती है.
कैसे बढ़ सकती हैं अमेरिका की मुश्किलें?
न्यू स्टार्ट संधि से रूस ने जिस तरह किनारा करने की बात कही है, परमाणु हथियारों को लेकर अमेरिका के साथ उसकी होड़ फिर शुरू हो सकती है. पुतिन ने ऐलान किया है कि रूस अपनी सुरक्षा के लिए फिर से परमाणु हथियारों का परीक्षण और विकास करेगा. पहले से ही रूस के पास दुनिया में सबसे ज्यादा परमाणु हथियार हैं.
सैन्य ताकत के मामले में भी रूस मजबूत है और उसके परमाणु हथियार दुनिया में सबसे ज्यादा शक्तिशाली बताए जाते हैं. रूस अगर नए हथियार बनाने के लिए परमाणु परीक्षण शुरू करता है तो रूस का मुकाबला करने के लिए अमेरिका भी परमाणु हथियारों के परीक्षण शुरू कर सकता है. इससे दुनिया में फिर से परमाणु हथियारों की रेस शुरू हो सकती है.
रूस और अमेरिका दुनिया के लगभग 90% परमाणु हथियारों को नियंत्रित करते हैं और दोनों ने इस बात पर जोर देते रहे हैं कि परमाणु युद्ध को हर कीमत पर टाला जाना चाहिए. लेकिन संधि खत्म होने से रूस के तैनात परमाणु हथियारों की संख्या के साथ उन्हें लॉन्च करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जमीन और समंदर आधारित वाहनों के निरीक्षण और निगरानी डेटा तक अमेरिका की पहुंच खत्म हो जाएगी.