भोपाल।भारत में कैंसर पीड़ितों की संख्या 26.7 मिलियन थी जिसके 2025 तक बढ़कर 29.8 मिलियन होने की संभावना है. ऐसे में इलाज की नई तकनीकों पर उम्मीद है. पढ़ें अक्षित जोशी की रिपोर्ट.अमेरिका के एक प्रमुख कैंसर विशेषज्ञ ने चेतावनी दी है कि आने वाले समय में भारत को कैंसर जैसी लंबे समय तक परेशान करने वाली क्रॉनिक बीमारियों की सूनामी का सामना करना पड़ सकता है.
हेमाटोलॉजी और मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग, क्लीवलैंड क्लिनिक, ओहियो, यूएसए के अध्यक्ष डॉ जेम अब्राहम ने कहा कि वैश्वीकरण, बढ़ती अर्थव्यवस्था, बढ़ती आबादी और बदलती जीवन शैली के कारण, भारत में कैंसर जैसे क्रॉनिक डिजीज के मामले बहुत तेजी से बढ़ेंगे.ग्लोबल कैंसर ऑब्जर्वेटरी यानी ग्लोबोकॉन के अनुसार जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के चलते दुनिया भर में 2040 तक कैंसर के मामले 28.4 मिलियन तक पहुंच सकते हैं जो 2020 से 47 प्रतिशत अधिक होंगे.
लगातार बढ़ते कैंसर के मामले
भारत में कैंसर का ग्राफ लगातार ऊपर ही जा रहा है. भारत में कैंसर का बोझ विषय पर इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2021 में भारत में कैंसर पीड़ितों की संख्या 26.7 मिलियन थी जिसके 2025 तक बढ़कर 29.8 मिलियन होने की संभावना है.
सबसे ज्यादा मामले पिछले वर्ष देखे गए जब उत्तर भारत में प्रति 100,000 व्यक्ति पर 2,408 रोगी और उत्तर-पूर्व में प्रति 100,000 व्यक्ति पर 2,177 रोगियों के मामले सामने आए. कैंसर के मामले महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा देखे जा रहे हैं.
कैंसर के कुल मामलों में 7 ऐसे प्रकार हैं जिनसे 40 प्रतिशत से अधिक मरीज पीड़ित हैं. ये हैं – फेफड़े (10.6 प्रतिशत), स्तन (10.5 प्रतिशत), अन्नप्रणाली यानी ईसोफेगस (5.8 प्रतिशत), मुंह (5.7 प्रतिशत), पेट (5.2 प्रतिशत) ), यकृत यानी लीवर (4.6 प्रतिशत) और गर्भाशय ग्रीवा (4.3 प्रतिशत)।
मुंह, लंग, पेट, कोलोरेक्टल, ग्रसनी, और ग्रासनली के कैंसर के मामले अगर छोड़ दिए जाएं तो भारतीय पुरुषों में अन्य कैंसर की दर प्रति 100,000 पर पांच या उससे मरीजों की है.
वहीं भारतीय महिलाओं में सबसे ज्यादा केस स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और कोलोरेक्टल कैंसर के आते हैं. इनके अलावा जो भी कैंसर हैं, उनके मामले प्रति 100,000 महिलाओं में पांच से कम ही दर्ज किए गए हैं.
भारत में क्यों बढ़ रहा है ग्राफ?
कैंसर समान लक्षणों वाले रोगों का समूह है जो शरीर की किसी भी जीवित कोशिका में हो सकता है. वहीं हर प्रकार के कैंसर का अपना अलग प्राकृतिक इतिहास होता है.
कैंसर जैसी नॉन-कम्यूनिकेबल डिजीज अक्सर जीवन शैली से संबंधित होती हैं, लंबे समय तक शरीर में इनकी उपस्थिति का पता नहीं लगता और इनके इलाज के लिए विशेष बुनियादी ढांचे और मानव संसाधनों की आवश्यकता होती है.
भारतीयों में कैंसर के बढ़ते मामलों के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं जिनमें गतिहीन जीवन शैली, जंक फूड, शराब और तम्बाकू का सेवन और खराब वायु गुणवत्ता आदि शामिल हैं जो कोशिकाओं की संरचना में बदलाव लेकर आते हैं.
महामारी विज्ञान के अध्ययन बताते हैं कि कैंसर के 70-90 प्रतिशत मामले पर्यावरण से जुड़े हुए हैं. इनमें कैंसर की वजह बनने वाले पर्यावरणीय जोखिमों में लाइफस्टाइल फैक्टर सबसे महत्वपूर्ण हैं और इनमें सुधार कर कैंसर की सूनामी को रोका जा सकता है.
पुरुषों में होने वाले कैंसर के 50 प्रतिशत मामले तंबाकू की वजह से होते हैं, इसमें तंबाकू चबाना या धूम्रपान करना – जैसे कारण शामिल हैं.
इसके बाद 20-30 प्रतिशत कैंसर के मामले खान पान, प्रजनन और यौन व्यवहार आदि से जुड़े हैं. कैंसर के मामलों में लगातार बढ़ोतरी बढ़ते वैश्वीकरण के साथ जीवन शैली में आए जबरदस्त बदलाव के चलते भी हो रही है.
पुरानी पीढ़ियों की तुलना में लोग तेजी से शहरों की ओर मुड़ रहे हैं और इसी के साथ उनके आहार और रहन सहन में बहुत बदलाव आता जा रहा है. इस तरह के बदलाव का असर धीरे धीरे शरीर पर दिखता है और नतीजा कैंसर जैसी क्रॉनिक डिजीज होती है.
कैंसर के इलाज में नई तकनीक
कैंसर के लिए अभी तक कोई ठोस नतीजे देने वाला इलाज सामने नहीं आया है लेकिन इस विषय पर हो रही लगातार रिसर्च आने वाले समय में इसके बेहतर रिजल्ट वाले ट्रीटमेंट की थोड़ी उम्मीद जरूर जगाती है.
कैंसर के इलाज के फिलहाल दो मुख्य तरीके हैं: कीमोथेरेपी और रेडिएशन- जो काफी हद तक सफल हैं लेकिन इनके साइड इफेक्ट भी हैं. ऐसे में ‘इम्यूनोथेरेपी’ कैंसर के इलाज के सबसे आशाजनक तरीकों में उभर कर आया है.
इम्यूनोथेरेपी में जो दवाइयां मरीज को दी जाती हैं, उनमें मौजूद ड्रग शरीर के कैंसर सेल्स को हाईलाइट कर उनकी लोकेशन की पहचान आसान करती हैं. साथ ही ये दवाइयां आपके शरीर के डिफेंस सिस्टम को भी मजबूत करती हैं ताकि ये ट्यूमर को पहचान कर उस पर हमला कर सकें. इस तरह के उपचार को कई तरह के कैंसर ट्रीटमेंट में उपयोग में लाया जा रहा है और कई दवाओं पर काम चल रहा है.