दुनियाभर के लिए कोरोना काल एक ऐसा दौर था, जिसने हर किसी के जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया। कोविड 19 एक ऐसी संक्रामक बीमारी है, जिससे व्यक्ति को शारीरिक तौर पर कमजोर बनाया, साथ ही सामाजिक स्थिति पर भी असर डाला। इस दौरान लॉकडाउन लगा तो आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ा। सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के बीच कई हीरो उभरकर निकले, जो कोरोना काल में कोविड वाॅरियर बनें। इन्हीं वाॅरियर्स में ओडिशा की दो महिलाएं भी शामिल हैं। आइए जानते हैं ओडिशा की महिला चैंपियन के बारे में, जो कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में जुड़ी और दूसरों की मदद के लिए कई बाधाएं पार की।
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UNICEF India: परिवार का साथ छूटा तो यूनिसेफ ने संवारा जीवन, कोरोनाकाल में ओडिशा की चैंपियन बनीं ये दो लड़कियां
सार
कोरोना काल में जब भारत में लॉकडाउन लगा तो जीवन ठहर सा गया। इस दौरान ओडिशा की रहने वाली मिनी और इतिश्री इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में शामिल हुईं।

कोरोनाकाल में मददगार बनीं यें महिलाएं – फोटो : unicefविज्ञापन
विस्तार
दुनियाभर के लिए कोरोना काल एक ऐसा दौर था, जिसने हर किसी के जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया। कोविड 19 एक ऐसी संक्रामक बीमारी है, जिससे व्यक्ति को शारीरिक तौर पर कमजोर बनाया, साथ ही सामाजिक स्थिति पर भी असर डाला। इस दौरान लॉकडाउन लगा तो आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ा। सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के बीच कई हीरो उभरकर निकले, जो कोरोना काल में कोविड वाॅरियर बनें। इन्हीं वाॅरियर्स में ओडिशा की दो महिलाएं भी शामिल हैं। आइए जानते हैं ओडिशा की महिला चैंपियन के बारे में, जो कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में जुड़ी और दूसरों की मदद के लिए कई बाधाएं पार की।
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कोविड 19 के खिलाफ मदद के लिए आईं दो लड़कियां
यूनिसेफ के मुताबिक, कोरोना काल में जब भारत में लॉकडाउन लगा तो जीवन ठहर सा गया। इस दौरान ओडिशा की रहने वाली मिनी और इतिश्री इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में शामिल हुईं। इतिश्री और मिनी दोनों 19 वर्षों से दोस्त हैं। ओडिशा सरकार ने होम क्वारंटाइन में रह रहे लोगों को ट्रैक करने के लिए काॅल सेंटर स्थापित किए तो इन दोनों लड़कियों ने इन कोविड काॅल सेंटर में काम किया।
क्वारंटाइन पीड़ितों के लिए बने काॅल सेंटर में किया काम
दोनो लड़कियां रोजाना क्वारंटाइन में रह रहे लोगों को कॉल करती और उसकी लोकेशन और सेहत की खबर लेतीं। इस बारे में इतिश्री कहती हैं कि कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान मैं घर पर असहाय होकर नहीं बैठना चाहती थी, बल्कि राज्य के लिए कुछ योगदान करना चाहती थी। हर दिन वह लगभग दोनों लोगों को कॉल करती थीं और उनके कोविड 19 के लक्षणों के बारे में पूछतीं। अगर कोविड का खतरा नजर आता तो क्वारंटाइन के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में जानकारी देतीं।
लोगों का नाराजगी का किया सामना
ये काम आसान नहीं था। अक्सर लोग उनकी काॅल पर रूखा बर्ताव करते, नाराजगी जाहिर करते। लेकिन दोनो धैर्य के साथ अपना कार्य करती रहतीं। ऐसा नहीं कि उनके खुद के सपने नहीं थे। वह हमेशा से किसी बड़े दफ्तर में कार्य करना चाहती थीं, पर वह इस कार्य से भी खुश थीं।
कौन हैं इतिश्री और मिनी

कोरोनाकाल में मददगार बनीं यें महिलाएं – फोटो : UNICEF
इतिश्री और मिनी का बचपन कष्ट में गुजरा। दोनों बिना परिवार के बड़ी हुईं। कई साल बाल देखभाल संस्थान में रहीं और वहीं से उन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी की। मिनी के माता पिता एक दूसरे से अलग हो चुके थे। उन्हें सेंटर में छोड़ दिया और कभी मिलने तक नहीं आए। दोनों लड़कियों से यूथ काउंसिल फॉर डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स के सहयोग से यूनिसेफ द्वारा चलाई जा रही ‘आफ्टर केयर’ पहल का लाभ उठाया ताकि सेंटर से बाहर के जीवन के लिए तैयार हो सकें। यहां मिनी को आतिथ्य प्रशिक्षण प्राप्त करने में मदद मिली और इतिश्री ने ग्राफिक डिजाइनर का कोर्स किया।
क्या है यूनिसेफ का आफ्टर केयर कार्यक्रम
यूनिसेफ ओडिशा फील्ड ऑफिस राज्य सरकार की भागीदारी में प्रदेश के बाल संरक्षण कार्यक्रमों को समर्थन देता है और यह सुनिश्चित करता है कि हर बच्चा सुरक्षित हो। वहीं यूनिसेफ का आफ्टर केयर कार्यक्रम के तहत जुवेलाइन जस्टिस अधिनियम, 2015 के मुताबिक, 18 वर्ष के होने पर संस्थागत देखभाल या किसी अन्य देखभाल व्यवस्थाओं से बाहर निकलने वालों की मदद करता है।