भक्ति गीतों के साथ ही कुछ देसी और कुछ बॉलीवुड गीतों का कॉम्बिनेशन होते हैं गरबे के गीत। गुजरात की मिटटी जहाँ से गरबे और डांडिया पूरे देश और दुनिया में फैले उसी मिटटी ने दिए हैं कई गरबा गायक भी। इन गायकों की आवाज में ठेठ गुजराती महक के साथ ही बसी लोककला का भी अनूठा अंदाज होता है जो गरबे के गीतों को भी अनूठापन दे जाता है। ऐसी ही एक खूबसूरत और खनकती आवाज हैं गुजरात की किंजल दवे। बहुत कम उम्र में उन्होंने अपनी आवाज और अपने अंदाज दोनों से ही देशभर में लोगों को दीवाना बना दिया। उनका मशहूर गरबा ‘चार चार बंगड़ी वाली गाड़ी’ आज देशभर के गरबा उत्सवों में गाया और बजाया जाता है।
नवरात्रि के साथ ही शुरू होगा नौ दिनों के उत्सव, उल्लास और खुशियों का सिलसिला भी। डांडिया या गरबा भी इस उल्लास भरे त्यौहार का एक प्रमुख आकर्षण होता है और देशभर में कई जगहों पर इसका आयोजन किया जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में हर रोज गरबे का आयोजन भी नए अंदाज में होता है। इस आयोजन के उत्साह को और बढ़ाते हैं गरबे के गीत और जब ठेठ गुजरात का ही रंग इन गीतों में बसा हो, तो कहना ही क्या। किंजल दवे ऐसे ही रंगों को अपनी आवाज से हवा में घोल देती हैं।
चार चार बंगड़ी वाली
2015-16 का समय था जब पहली बार किंजल ‘चार चार बंगड़ी वाली’ गीत के साथ अचानक से पूरे देश में छा गई थीं। वो गीत उस दौर का गरबा एंथम ही बन गया था। गरबे के गीतों में फ्यूजन का दौर तो खैर काफी पहले से होने लगा था। किंजल ने इसे और भी ग्लोबल बना दिया। उनकी दमदार आवाज़ के साथ खूबसूरत व्यक्तित्व और गरबे करते हुए गाने का अंदाज लोगों के दिलों में बस गया। गीत में जिस तरह उन्होंने अपने छोटे भाई के लिए चार चार बंगड़ी वाली ओडी ( गाड़ी) ला देने का जिक्र किया था, वह सबको लुभा गया। लेकिन यहां तक पहुंचना इतना आसान भी नहीं था। इसके पहले किंजल के जीवन में भी कई बाधाएं और चुनौतियाँ आईं जिनको उन्होंने बिना किसी ऑडी के मात्र एक साइकल के सहारे भी पार किया।

साइकल का सफर
पाटण जिले (गुजरात) के एक छोटे से गांव जेसंगपुरा में एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली किंजल के घर में उनके पिताजी कभी कभार कार्यक्रमों में भजन और गरबे गाया करते थे। माँ सिलाई का काम करतीं। यह उस समय की बात है जब किंजल के पिता काम के लिए पूरे परिवार के साथ अहमदाबाद आ गए थे। नौकरी के साथ साथ किंजल के पिता गायकी भी करते और किंजल अक्सर उनके साथ कार्यक्रमों में जातीं और उन्हें गाते हुए सुनतीं।
लय, ताल और सुर का ज्ञान उन्हें यहीं से मिलना शुरू हुआ। मात्र 7-8 साल की उम्र से किंजल ने बकायदा अपने पिता के साथ गायत्री पाठ गाना शुरू कर दिया। यही उनकी संगीत की तालीम थी और यही रियाज। कार्यक्रमों में पहुंचने का सफर पूरा होता एक साइकल पर जो उनके परिवार में एकमात्र वाहन था। साइकल के पहियों पर समय का चक्र घूमा और थोड़ी बचत के बाद एक बाइक खरीदी गई लेकिन वह भी कुछ दिनों बाद चोरी हो गई। इस चुनौती ने किंजल को रोका नहीं। उन्होंने और मेहनत की और एक और बाइक खरीदी, आज वे सफलता के उस पायदान पर पहुंच गई हैं जहां महंगी चार पहिया गाड़ी वे आसानी से खरीद सकती हैं। आज किंजल 100 के करीब एलबम निकाल चुकी हैं, वे देश-विदेश में हज़ारों शो कर चुकी हैं और दुनियाभर में उनके फैंस हैं।
चेहर माँ पर आस्था
गरबे गाने का मुख्य ध्येय माँ की आराधना होती है। किंजल के गीतों में तो माँ की आराधना के सुर सुनाई देते ही हैं, वह स्वयं भी माँ की भक्त हैं। किंजल अपनी इस सारी सफलता का श्रेय चेहर माँ को देती हैं। वह मानती हैं कि आज वे जिस मुकाम पर हैं वह चेहर माँ के आशीर्वाद से ही संभव हुआ है। केवल सिंगिंग ही नहीं, किंजल मॉडलिंग और अभिनय जैसी विधाओं में भी सफलता पा चुकी हैं। फैशन मॉडलिंग और नृत्य में भी उन्होंने खास पहचान बनाई है। नवरात्रि के दौरान किंजल के गाये गरबे पंडालों में नृत्य करने वाले कदमों में और भी उत्साह भर देते हैं और यह उत्साह साल दर साल बढ़ता जा रहा है।