‘‘अभीना का असली नाम अभिजीत है. अभिजीत जब ढाई साल का था, तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई. मैंने अकेले ही उसका पालन-पोषण किया. बचपन में वो बिल्कुल सामान्य था. हां, उसे डांस व मेकअप का शौक़ था. इसके अलावा उसका स्वभाव सामान्य लड़कों की तरह ही था. ग्रैजुएशन करने के बाद वो हमसफ़र ट्रस्ट नामक संस्था में नौकरी करने लगा. उसके बाद से ही धीरे-धीरे उसमें परिवर्तन आने लगे, लेकिन मुझे इस बात की बिल्कुल भी भनक नहीं थी. उसने मुझे सिर्फ़ इतना बताया था कि मां मैं अपने एनजीओ के लिए लड़की के गेटअप में डांस शोज़ करता हूं और साथ ही बच्चों व वेश्याओं की काउंसलिंग करता हूं. पर, वास्तव में वो क्या करता था या उसके मन में क्या चल रहा, मुझे कुछ मालूम नहीं था. वर्ष 2005 में मैं रिटायर हो गई. हम बीएमसी का सरकारी क्वॉटर छोड़कर दूसरी जगह शिफ़्ट हो गए. उन्हीं दिनों अभिजीत ने मुझसे कहा कि उसे प्रमोशन मिल गया है और उसे दिल्ली शिफ़्ट होना पड़ेगा, लेकिन उसके दिल्ली जाने का उद्देश्य कुछ और ही था. वहां जाकर वो पूरी तरह ट्रैंस्जेंडर बन गया. उसने अपना नाम अभीना रख लिया. तब तक भी मुझे कुछ पता नहीं था. लेकिन जब मैंने उससे शादी करने के लिए कहा उसने साफ़ इनकार कर दिया. वजह पूछने पर उसने मुझे सबकुछ बताया और साथ में यह भी कहा कि अगर आपको यह मंज़ूर नहीं है तो मुझे छोड़ दो, क्योंकि यह मेरा आख़िरी फ़ैसला है. यह सुनकर मैं पूरी तरह टूट गई. मुझे रात-रात भर नींद नहीं आती थी. लेकिन फिर धीरे-धीरे मैंने ख़ुद को संभाला. मैंने सोचा कि अगर मैं अपने बच्चे को छोड़ दूंगी तो वो बिल्कुल अकेला पड़ जाएगा इसलिए मैंने उसका साथ देने का निर्णय किया. दो साल पहले जब उसने ब्रेस्ट इम्प्लांट कराने का निर्णय लिया तो मैंने ख़ुद उसके साथ अस्पताल जाकर उसकी सर्जरी कराई, क्योंकि मैं उसे ऐसे समय अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी. हमारी सोसायटी वालों को पहले कुछ मालूम नहीं था, लेकिन अब सबको पता चल गया है. मैंने रिश्तेदारों व कुछ ख़ास सहेलियों को भी इस बारे में बता दिया है. सामने से तो कोई कुछ नहीं कहता. पीठ पीछे लोग क्या बातें कहते हैं, उससे मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किन्नरों के लिए काम कर रहा है. वो सेमिनार्स के लिए विदेश जाता रहता है. वो मुझसे कहता है कि मां, मैं किसी से नहीं डरता, क्योंकि तुम मेरे साथ हो. उसने मुझे बताया कि उसके कई ट्रैंस्जेंडर्स दोस्तों के मां-बाप ने उन्हें छोड़ दिया है और उनका हाल बहुत बुरा है. वे अपने माता पिता का मुंह भी नहीं देखना चाहते. मैं नहीं चाहती कि मेरा बच्चा भी ऐसा सोचे. जब कभी मैं सिग्नल पर किन्नरों को भीख मांगते हुए देखती हूं तो सोचती हूं कि मेरे बेटे का हाल ऐसा नहीं होना चाहिए इसलिए मैं जब तक ज़िंदा हूं, उसका साथ दूंगी.’’