योगिता भयाना की जुबानी….
मैं योगिता भयाना दिल्ली की रहने वाली हूं। जब भी कहीं रेप पीड़िताओं को मदद की दरकार होती है वहां पहुंच जाती हूं। उन्हें लीगल, फायनेंशियल और इमोशनल रूप से सपोर्ट करती हूं।फाइटिंग एगेंस्ट जेंडर वॉयलेंस, POSH एक्सपर्ट हूं। परी ऑफ इंडिया कैंपेन की फाउंडर और पब्लिक स्पीकर भी हूं। दिल्ली की निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए कड़ी लड़ाई लड़ी।मैं बिजनेस फैमिली से आती हूं। समाज सेवा करने की धुन तो बचपन में ही लग गई थी। जब चौथी कक्षा में थी तब ओल्ड एज होम के लिए फंड रेजिंग करती। स्कूल में फंड रेजिंग के लिए भी इनाम दिया गया।स्कूल में हुए एक प्रोग्राम में मैं बेड़ियों में जकड़ी भारत मां बनी थी, इसके लिए मुझे अवार्ड दिया गया। तब मैं 10 साल की ही थी। 10वीं की परीक्षा के बाद तब पेड़ के नीच स्लम के बच्चों को पढ़ाती। तब मेरे पेरेंट्स ने हमेशा मोटिवेट किया।
पढ़ाई के साथ–साथ एयरलाइंस की नौकरी भी की
10वीं के बाद से ही मैंने तय कर लिया था कि सोशल सर्विस ही मेरा करियर है। परिवार में भी लोग जानते थे कि मैं एमबीए या कोई प्रोफेशनल कोर्स नहीं करूंगी। 12वीं के बाद मैंने मिरांडा हाउस से ग्रेजुएशन किया। ग्रेजुएशन के दौरान ही एक डोमेस्टिक एयरलाइंस में नौकरी लग गई, तब मेरी उम्र 19 वर्ष थी। मैंने पढ़ाई और नौकरी साथ-साथ की।
जरूरतमंदों की मदद करने को आगे बढ़ी

बिहार का व्यक्ति सड़क दुर्घटना में घायल हो गया था। खून से लथपथ था। उसे किसी तरह अस्पताल पहुंचाया। जब तक उस व्यक्ति का इलाज शुरू होता तब तक उसने दम तोड़ दिया। मैंने उसके पॉकेट से एड्रेस निकाला। उसकी पत्नी को फोन किया। उसे जो भी मदद हो सकती थी किया। उसके बेटे के इलाज में भी आगे आई। उनका केस लड़ने में मदद की। इस घटना के बाद मुझे जीवन का लक्ष्य मिल गया।
…और नौकरी छोड़ दी
2007 में जब हमारी एयरलाइंस नंबर 1 थी और मैं सीनियर पॉजिशन पर थी, तब मैंने नौकरी छोड़ दी। तब मुझे प्रमोशन मिलने वाली थी, लेकिन मैं जानती थी कि प्रमोशन मिलने के बाद नौकरी नहीं छोड़ पाऊंगी।
इसलिए मैंने लोगों की सेवा करने का मन बनाया। परिवार के लोगों ने नौकरी छोड़ने का विरोध किया। कहा कि पागल हो, इतनी अच्छी नौकरी छोड़ रही हो। दोस्तों ने भी मना किया। हालांकि वो जानते थे कि यह लड़की आज नहीं तो कल सोशल सर्विस में जरूर जाएगी।
इस तरह नौकरी छोड़ दी और दास चैरिटेबल फाउंडेशन की स्थापना की। साथ ही रेड क्रॉस से कोर्स किया, डिजास्टर मैनेजमेंट में डिप्लोमा लिया।
अस्पताल में मरीजों की परेशानी को करीब से जाना
मैंने 2007 में मुख्यमंत्री कार्यालय में फोन किया और कहा कि मुझे सीएम से मिलना है। समाज सेवा करना चाहती हूं। मुझे मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने मिलने का समय दिया। जब मैंने बताया कि एयरलाइंस की नौकरी छोड़ कर लोगों के लिए कुछ करना चाहती हूं तो उन्होंने भी मुझे क्रेजी कहा। कहा कि ऐसा मैंने किसी को करते नहीं देखा।
मुख्यमंत्री शीली दीक्षित ने मंत्री किरण वालिया को फोन किया और कहा कि इन्हें समाज से जुड़े कामों में जोड़ें। मुझे उन्होंने रोगी कल्याण समिति में रखा। एंबुलेंस लाने वाली कमिटी में डाला।
इस बीच कभी-कभी एयरलाइंस की कंसल्टेंसी का काम भी करती थी। दो-तीन साल तक काम किया। लेकिन बाद में मैंने अपने एनजीओ के जरिए महिलाओं के लिए काम करना शुरू किया।
बम ब्लास्ट की पीड़िताओं की मदद की
मैंने नौकरी छोड़ दी थी। 2008 में दिल्ली के सरोजनी नगर सहित कई जगह बम ब्लास्ट हुए थे। तब घायल लोगों को अस्पताल ले जाना, उनके इलाज की सुविधाएं दिलाना, पीड़ित परिवारों को सपोर्ट किया। करोल बाग में बंजारा कमेटी है। वहां एक छोटी बच्ची की मदद की। मुआवजा दिलाने और लीगल सहायता दिलाने के लिए लगातार काम करती रही। तब तक मैं किसी एक्टिविस्ट के रूप में काम नहीं कर रही थी। बस मुझे यही लगता था कि मुझे इनकी मदद करनी है।
लद्दाख में बादल फटा तो रेस्क्यू करने गई
2008 में जब लद्दाख में बादल फटा तब मैं वहां पहुंची। एक महीना वहां रही, लोगों की मदद की। रेस्क्यू कराने, अस्पताल में इलाज कराने से लेकर, उनका पुनर्वास कराने में जुटी रही।
कश्मीर में जब फ्लड आया तो कुछ को रेस्क्यू कराकर दिल्ली लाया गया था। उन पीड़ित लोगों का घर खोजवाया और उनके रिहैबिटेलशन का काम किया।
राष्ट्रीय महिला आयोग में भी किया काम
2010 में राष्ट्रीय महिला आयोग में भी काम करने का अवसर मिला। तब वहां रेप के कई केसेज आते थे। उनके बारे में जानना शुरू किया। बिहार, बंगाल, यूपी जहां ऐसे मामले आते थे, वहां जाती थी। लेकिन तब इस मुद्दे की अहमियत नहीं होती थी। केवल फॉर्मेलेटी होती थी। इसी बीच 2012 में निर्भया कांड हो गया। इसके बाद प्रोटेस्ट का नया सिलसिला शुरू हो गया।
दुख, अफसोस के साथ–साथ बढ़ता गया आक्रोश
16 दिसंबर 2012 का दिन था। मैं भी फैमिली के साथ उसी मॉल में डिनर करने गई थी जहां निर्भया गई थी। जब अगले दिन घटना की जानकारी मिली तो बेहद तकलीफ हुई। उस दिन मैं महिला आयोग गई। तब मैंने उस समय की महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा को रोते देखा।
वो अस्पताल में निर्भया से मिलकर आई थीं। ममता शर्मा ने जो बताया वो रोंगेटे खड़ा करने वाला था। इस बीच घटना को लेकर लोगों में आक्रोश बढ़ने लगा। मीडिया में इस पर लगातार खबरें आ रहीं थीं।
पुलिस पर दबाव था कि आरोपियों को जल्दी से जल्दी पकड़ा जाए। दिल्ली में इंडिया गेट, जंतर-मंतर पर बड़ी संख्या में लोग जुटने लगे थे। मैंने इन प्रदर्शनों में भाग लिया। निर्भया की मृत्यु होने के बाद यह आक्रोश और बढ़ गया। मैं लगातार एक महीने तक जंतर-मंतर जाती रही। निर्भया के दोषियों को पकड़ने और सजा दिलाने के लिए जुटी रही।
एंटी रेप एक्टिविस्ट के रूप में बनी पहचान
निर्भया कांड के बाद एक्टिविस्ट के रूप में काम करना शुरू किया। रेप के कई केस तब भी आ रहे थे। इस दौरान कई बार एम्स गई। गांधीनगर की एक लड़की का केस आया था। मैं उसका वार्ड खोजते-खोजते दूसरे वार्ड में पहुंच गई। चार साल की रेप पीड़िता लड़की का वहां इलाज चल रहा था। तब पता चला कि छोटे-छोटे बच्चों के साथ रेप के कितने केस होते हैं और इस बारे में कोई रिपोर्ट ही दर्ज नहीं होती।
2012-15 तक रोज मेरा समय कचहरी, अस्पताल और थाने में निकला। सैकड़ों केस को मैंने देखा। रेप पीड़िताओं के परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर डटी रही।
निर्भया कांड का जुवेनाइल जेल से निकला तो फिर आक्रोश बढ़ गया
इस बीच निर्भया कांड का एक आरोपित जुवेनाइल छूट गया। इसके विरोध में फिर से हमने मंजनू का टीला जेल के बाहर प्रदर्शन किया। निर्भया की मां आशा देवी भी आईं। धीरे-धीरे इस मुद्दे से हजारों लोग जुड़ गए। हम लोगों ने जुवेनाइल लॉ में बदलाव के लिए निर्भया वॉक किया।
हम लोगों की मांग को सरकार ने सुनी। तब अगले दिन कई राजनेताओं ने हमें बुलाया और बात सुनी। सुषमा स्वराज, राहुल गांधी से मिले। सरकार ने इस प्रदर्शन के बाद ही जुवेनाइल से जुड़े कानूनों में बदलाव किया। जब राज्यसभा में जुवेनाइल जस्टिस बिल 2014 पास किया जा रहा था तब निर्भया की मां आशा देवी के साथ मैं मौजूद थी। आंदोलन के 48 घंटे के अंदर बिल पारित हो गया। तब लगा कि न्याय में एक कड़ी और जुड़ गई है।
देशभर से लोग मैसेज कर रहे थे, सराहना कर रहे थे। तब मैं बहुत प्रोत्साहित हुई। जब मैं सोशल मीडिया पर आई तो वहां भी लोगों ने बहुत मोटिवेट किया।
मैंने अब परी कैंपेन को विस्तार दिया है। हर स्टेट में गांव-गांव टीम बनाई गई है। पीड़ित परिवारों को कैसै मदद करनी है और लोगों की सोच कैसे बदलनी है इस पर काम कर रहे। मेरा मानना है कि समाज और सरकार के स्तर पर मिलकर काम करने की जरूरत है। बिहार-झारखंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी आदि राज्यों में टीम काम कर रही है।
मैसेज लड़कियों के लिए नहीं, लड़कों के लिए है
ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए लड़कों को अपनी सोच बदलनी होगी। मैं तो यही कहती हूं कि लड़कों को समझाओ और बेटी बचाओ। बेटे का सुधार, समाज का सुधार।