पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कनखल राजा दक्ष के राज्य की राजधानी व भगवान शिव की ससुराल थी। आज जहां दक्ष मंदिर है वहां महल था जिसमें मां सती का जन्म हुआ था। मायापुरी के इस क्षेत्र में ही विराट यज्ञ स्थल, सती कुंड, गौरी कुंड आदि पवित्र पूजनीय स्थल हैं। मान्यता है कि सावन में दक्षेश्वर बन भोले भंडारी यहां विराजमान होते हैं।
हरिद्वार में मायापुरी का यह अत्यंत प्राचीन कनखल क्षेत्र दक्षसुता मां सती का मायका है। यही वह स्थल है जहां मामता सती के बचपन की पैजनियों से लेकर अवसान तक के चिन्ह बिखरे हुए हैं। दक्ष को दिया वचन निभाते हुए शिव इन दिनों कनखल में दक्षेश्वर बनकर विराजमान हैं। यह संपूर्ण मायापुरी भगवान शिव की बारात आने की गवाह है। सती ने पति के अपमान से क्षुब्ध होकर जब इसी कनखल में अपमान की अग्नि में अपना शरीर दग्ध कर लिया तब अगले जन्म में शिव को पाने के लिए पार्वती ने भी मायापुरी में आकर तपस्या की थी। सतयुग के वे तमाम तीर्थ आज भी उस काल के गवाह हैं। लाखों शिवभक्त कांवड़िए इन पावन स्थलों का दर्शन कर रहे हैं।
जनवासा मंदिर है शिव बारात घर
स्कंद पुराण के केदार खंड में इस स्थल का पूरा वर्णन मिलता है। राजा दक्ष की राजधानी कनखल के क्षेत्र का विस्तार नंदा देवी के समीप कांठा पर्वत तक था। मायापुरी वीरभद्र तक फैली थी। कनखल में आज जहां दक्ष मंदिर है वहां ब्रह्मा पुत्र दक्ष का विशाल महल था। दक्ष से सटे वर्तमान शीतला माता मंदिर स्थल पर स्थित महल के कक्ष में मां सती का जन्म हुआ था। वर्तमान दुखभंजन और दरिद्रभंजन क्षेत्र में शिव बारात का स्वागत राजा दक्ष ने किया था। भगवान भोलेनाथ की बारात जहां ठहरी थी, वह स्थल कनखल के मौजूदा पहाड़ी बाजार में स्थित है। इस मंदिर को आज भी जनवासा मंदिर के रूप में पूजा जाता है।
यज्ञ में पहुंचे थे 84 हजार ऋषि–मुनि
कालांतर में शिव से नाराज राजा दक्ष ने कनखल में एक विराट यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के लिए वर्तमान जगजीतपुर से सुल्तानपुर के पचेलो महादेव तक विशाल यज्ञजीतपुर बसाया गया था। इस यज्ञ को संपन्न कराने 84 हजार ऋषि-मुनि आए। ब्रह्मा और विष्णु भी आए। किंतु शिव से नाराज दक्ष ने जामाता शिव और पुत्री सती को निमंत्रण नहीं भेजा। शिव के मना करने के बावजूद सती पिता के यज्ञ में चली आईं। पर अपना और शिव का कोई आसन न देखकर इतनी अपमानित हुईं कि यज्ञकुंड में स्वयं को भस्म कर लिया। यह भव्य सती कुंड आज भी जगजीतपुर में स्थित है।
हरिद्वार की अधिष्ठात्री माया देवी
कुपित शिव ने अपने प्रधान गण वीरभद्र को राजा दक्ष का यज्ञ भंग करने के लिए कनखल भेजा। शिव गणों ने पूरा यज्ञ उखाड़ फेंका। वीरभद्र ने सती की दग्ध देह जिस स्थल पर लाकर रखी वह स्थल आज हरिद्वार की अधिष्ठात्री माया देवी के रूप में विख्यात है। यज्ञ का विध्वंस होते शिव ने जिस नील पर्वत पर बैठकर देखा वहां नीलेश्वर मंदिर मौजूद है। अगले जन्म में सती ने हिमाचल पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया। शिव को पाने के लिए गौरी ने बिल्वकेश्वर मंदिर के समीप तपस्या की। यह स्थल गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है। गौरी और शंकर का जहां मिलन हुआ वह गौरीशंकर मंदिर चंडी मंदिर की तलहटी में विद्यमान है।