Lok Vikas India

  • Home
  • About Us
  • Contact us
  • Privacy Policy
  • Home
  • About Us
  • Contact us
  • Privacy Policy
  • Home
  • स्वास्थ्य
  • शिक्षा
  • पर्यावरण
  • महिलाएं एवं बच्चे
  • कृषि
  • रोजगार
  • सूचना संचार
  • सामाजिक मुद्दे
  • खेलकूद
  • Home
  • स्वास्थ्य
  • शिक्षा
  • पर्यावरण
  • महिलाएं एवं बच्चे
  • कृषि
  • रोजगार
  • सूचना संचार
  • सामाजिक मुद्दे
  • खेलकूद
Home महिलाएं एवं बच्चे

हर साल आत्महत्या से होती हज़ारों गृहिणियों की मौत का ज़िम्मेदार कौन?

lokvikasindia by lokvikasindia
September 23, 2022
in महिलाएं एवं बच्चे
0
हर साल आत्महत्या से होती हज़ारों गृहिणियों की मौत का ज़िम्मेदार कौन?

हाउसवाइफ शब्द सुनते ही, सबसे पहले लोगों के दिमाग में यह आता है कि हाउसवाइफ यानि किसी भी हालत में सबका ख्याल रखनेवाली। वास्तव में अमूमन महिलाओं को बचपन से ऐसी ही सीख मिलती है कि शादी के बाद वह सब कुछ भुलाकर अपने नये घर को संवारने में लगी रहेगी। एक ओर जहां भारतीय समाज किसी महिला के हाउसवाइफ होने का महिमामंडन करता है, तो वहीं दूसरी ओर घर में रह रही औरतों की मानसिक, शारीरिक या भावनात्मक जरूरतों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ भी करता है। मानसिक स्वास्थ्य को न तो महत्वपूर्ण समझा जाता है और न ही इसके लिए चिकित्सा करवाई जाती है। बात जब गृहिणियों की हो, तो मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा और भी तुच्छ बन जाता है। हाल ही में जारी हुए राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों को देखें, तो साल 2021 में आत्महत्या से होने वाली महिलाओं की मौत में 51.5 फीसद गृहिणियां थी। बीते साल कुल 45,026 महिलाओं की मौत आत्महत्या से हुई जिसमें से 23,178 गृहणियां शामिल थीं।

यह कोई पहला साल नहीं जब आत्महत्या से होनेवाली मौत के आंकड़ों में हाउसवाइफ्स की संख्या ज्यादा रही हो। साल 2018 में, हर दिन औसतन लगभग 63 गृहिणियों की आत्महत्या से मौत हुई है। इंडियास्पेंड की रिपोर्ट में राष्ट्रीय आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित खबर के मुताबिक, साल 2001 से भारत में हर साल 20,000 से अधिक गृहिणियों की मौत की वजह आत्महत्या रही है। पिछले कुछ सालों में आत्महत्या के मामले में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या में इजाफा होने के अलावा हाउसवाइफ्स की संख्या सबसे ज्यादा रही है। आत्महत्या से होनेवाली मौत को भले ही एक पारिवारिक और निजी समस्या के तौर पर देखा जाता हो, लेकिन यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है जिसके पीछे पितृसत्ता, बेरोज़गारी, जाति, गरीबी, संसाधनों तक पहुंच, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता में कमी जैसी वजहें शामिल हैं।

READ ALSO

MP: महिलाओं को दी गई ग्राम पंचायतों की बड़ी जिम्मेदारी, अब बदलेगी गांवों की तस्वीर

MP News: दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी छोटे से गांव की ये महिला किसान

आत्महत्या से हुई मौतों के बारे में क्या कहते हैं आंकड़े 

साल 2021 के दौरान भारत में आत्महत्या से होनेवाली मौत का दर 12.0 दर्ज हुआ। सबसे ज्यादा आत्महत्या से होनेवाली मौत के समूहों में 18 से 30 वर्ष से कम आयु और 30 से 45 वर्ष से कम आयु के लोग शामिल थे। इनमें से पहले समूह से 34.5 और दूसरे से 31.7 प्रतिशत आत्महत्या से मौत के मामले दर्ज हुए। बीते साल महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में सबसे अधिक आत्महत्या से मौत की घटनाएं दर्ज हुई। वहीं केंद्र शाषित राज्यों में दिल्ली सबसे ऊपर रहा। जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में साल 2020 की तुलना में 2021 में आत्महत्याओं से मौत के दर में वृद्धि हुई है, उनमें तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पुडुचेरी, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और मणिपुर शामिल हैं।

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं में 18 साल से कम के आयु वर्ग और 18 से 45 साल के आयु वर्ग में सबसे ज्यादा आत्महत्या से मौत की घटनाएं दर्ज हुई। आत्महत्या से मौत का शिकार होने वाली गृहिणियों में अधिकांश मौत तमिलनाडु में दर्ज हुई। वहीं, इसमें मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी 13.2 फीसद और महाराष्ट्र की हिस्स्सेदारी 12.3 फीसद रही। वैश्विक स्तर पर, भारत में सबसे ज्यादा आत्महत्या से मौत होती है। आंकड़ों में भारतीय पुरुष आत्महत्या से होने वाली मौत के एक चौथाई हिस्सेदार हैं। वहीं विश्व के सभी 15-39 आयु वर्ग की महिलाओं में यह 36 प्रतिशत है।

एक ओर जहां भारतीय समाज किसी महिला के हाउसवाइफ होने का महिमामंडन करता है, तो वहीं दूसरी ओर घर में रह रही औरतों की मानसिक, शारीरिक या भावनात्मक जरूरतों को पूरी तरह नजरअंदाज़ भी करता है।

आत्महत्या से मौत के मामले में गृहिणियों की लगातार बढ़ती संख्या 

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार आत्महत्या से हुई महिलाओं की मौत में अधिकतर मामले दहेज से संबंधित थे या बच्चे न होने की समस्या से जुड़े थे। कुछ सालों पहले के आंकड़ों पर गौर करें तो डिजिटल आर्काइव पबमेड पर साल 2015-16 की नैशनल मेंटल हेल्थ सर्वे पर आधारित एक स्टडी प्रकाशित हुई थी। इसके अनुसार महिलाओं में आत्महत्या से होनेवाली मौत की व्यापकता दर 6 प्रतिशत थी जो पुरुषों की 4·1 व्यापकता दर से अधिक थी। आत्महत्या से होनेवाली मौत की व्यापकता सबसे अधिक 40-49 वर्ष की महिलाओं में पाई गई जबकि पुरुषों में 60 या उससे अधिक उम्र में। मेडिकल जर्नल द लैंसेट के शोध अनुसार, वैश्विक आत्महत्या से होनेवाली मौत में भारतीय महिलाओं की भागीदारी साल 1990 के लगभग 25.3 फीसद से बढ़कर साल 2016 में 36.6 हो गई। यानि बीते साल घरेलू महिलाओं की आत्महत्या से होनेवाली मौत की संख्या कोई छिटपुट घटना या एकाएक बढ़ गई संख्या नहीं है।

एनसीआरबी के पिछले कुछ सालों के आंकड़ों को देखें, तो आत्महत्या से होने वाली मौत में साल 2017 में 16.5 फीसद, 2018 में यह 17.1 प्रतिशत और साल 2019 में 15.4 प्रतिशत महिलाएं गृहिणियां थी। आत्महत्या का प्रकार या प्रवृत्ति को समझने के लिए जरूरी है कि हम पीड़ितों का केवल पारिवारिक ही नहीं बल्कि उम्र, लिंग, सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति का भी विश्लेषण करें। हाउसवाइफ्स की आत्महत्या की बढ़ती संख्या, देश में महिलाओं के नजरअंदाज़ होते मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति की गंभीरता भी दिखाती है।

साथ ही, घरेलू महिलाओं की आत्महत्या से मौत घरेलू हिंसा, उनकी आर्थिक, सामाजिक या शैक्षिक स्थिति से जुड़े भी कई सवाल खड़ी करती हैं। पिछले साल कोविड महामारी के बाद एकाएक न सिर्फ घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी हुई, बल्कि महिलाओं के खिलाफ अन्य हिंसा, बाल विवाह और बाल तस्करी में भी वृद्धि हुई। इन सभी कारणों ने महिलाओं में विशेषकर कम और मध्यम उम्र की महिलाओं में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया।

आत्महत्या से होनेवाली मौत को भले ही एक पारिवारिक और निजी समस्या के तौर पर देखा जाता हो, लेकिन यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है जिसके पीछे पितृसत्ता, बेरोजगारी, जाति, गरीबी, संसाधनों तक पहुंच, मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता में कमी जैसी वजहें शामिल हैं।

गृहिणी बनना एक कठिन काम है

भारतीय समाज में एक ‘सफल शादी‘ का लगभग पूरा दायित्व महिला को सौंप दिया जाता है। अमूमन महिलाओं को बचपन से दूसरों के लिए जीने की सीख दी जाती है। महिलाओं के लिए यह प्रक्रिया शादी के बाद शारीरिक या मानसिक रूप से थका देने वाली हो जाती है। बचपन से त्याग और ममता के पाठ की सोशल कंडीशनिंग के बीच, उनका खुद के बारे में सिर्फ सोचना भी उन्हें स्वार्थी बना देता है। इसके अलावा, घर की देखभाल किसी भी अन्य काम की तरह ही समय, लगन और मेहनत की मांग करता है। हां इतना ज़रूर है कि यह काम अनपेड होता है।

ऐसे में, घरेलू महिलाओं का अपने लिए कुछ करना बहुत कठिन है। आम तौर पर गृहिणियों के लिए यह एक ऐसी नौकरी के समान है, जहां वेतन, प्रोत्साहन या छुट्टी नहीं मिलती और पसंद न आने पर नौकरी छोड़ने की इजाज़त और विकल्प दोनों ही नहीं होता। इन ज़िम्मेदारियों के तहत किसी गृहिणी को न सिर्फ घर के लोगों का शारीरिक रूप से ख्याल रखना होता है, बल्कि उनकी इच्छाओं, सपनों और खुशियों की ज़िम्मेदारी भी उठानी पड़ती है। इस पूरी प्रक्रिया में उनका अपना मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य नज़रअंदाज़ होता है।

साल 2019 के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय सर्वेक्षण के अनुसार 27 फीसद पुरुषों की तुलना में 90 फीसद से अधिक महिलाओं ने घर के अवैतनिक घरेलू काम में भाग लिया। वहीं, 71 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में महज 22 प्रतिशत महिलाओं ने रोजगार और अन्य संबंधित गतिविधियों में भाग लिया।

ध्यान दें कि घर में रह रही महिलाओं यानि हाउसवाइफ के लिए अक्सर कमाई का कोई जरिया नहीं होता। वे अपने जीवनसाथी पर आर्थिक रूप से निर्भर करती हैं। इसलिए उनका अपनी बुनियादी जरूरतों जैसे मनोरंजन, शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य के लिए कोई भी खुद निर्णय लेना कठिन है। साथ ही, शिक्षा और जागरूकता की कमी में उन्हें उनके अधिकारों का एहसास होना और अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की जिम्मेदारी ले पाना मुश्किल है। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में मौजूदा मिथक पीड़ितों को खुलकर सामने आने से रोकते हैं।

जब घर ही गृहिणियों के लिए बन जाए असुरक्षित जगह

गृहिणियों के लिए अपने हालात से लड़ना तब और भी मुश्किल हो जाता है जब सबसे सुरक्षित जगह ‘घर‘ ही उसके लिए एक असुरक्षित जगह बन जाता हो। घर में अगर महिलाएं लगातार घरेलू हिंसा का सामना कर रही हो तो उनका इस तरह के माहौल या स्थिति से बच पाना या बाहर निकल पाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से उसका स्वस्थ रहना संभव नहीं। चूंकि मानसिक स्वास्थ्य के लिए कदम उठाने को भी एक जुर्म या गलती के तरह देखा जाता है, महिलाओं का मदद के लिए खुलकर अपनी समस्याओं को बयान करना एक और खतरा या आघात का कारण बन सकता है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट पर आधारित एक खबर के मुताबिक महिलाओं के लिए दुनिया में सबसे खतरनाक जगह उनका घर है जहाँ वे अपने साथी के साथ रह रही हो। भारत में भी एनसीआरबी के आंकड़ों को देखें तो बलात्कार के अधिकांश मामलों में महिलाओं के परिजन या परिचित जिम्मेदार हैं। बस्टिंग द किचन एक्सीडेंट मिथ: केस ऑफ़ बर्न इंज्युरीस इन इंडिया नामक इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इनोवेशन एंड एप्लाइड स्टडीज का एक शोध बताता है कि भारत की चिकित्सकीय रिपोर्ट्स से साफ़ है कि कम उम्र की विवाहित महिलाओं में जलने से होने वाली मौतें ज्यादातर चूल्हे के विस्फोट या सिलेंडर विस्फोट के कारण रसोई में होने वाली दुर्घटनाओं के रूप में होती हैं।

इस रिपोर्ट के अनुसार ऐसी घटनाओं में बचने वाली महिलाओं और उनके परिवारों के साथ बातचीत से समझा जा सकता है कि महिलाओं का किसी भी तरह की पुलिस जांच से बचने के लिए सभी चोटों के कारण को दुर्घटना बताना उनकी ओर से जानबूझकर किया गया एक प्रयास है। यह आत्महत्या से होनावाली मौत के साथ-साथ हत्याओं के मामलों में भी लागू होती है। रिपोर्ट बताती है कि लगभग सभी महिलाओं ने घरेलू हिंसा से पीड़ित होने की सूचना दी और इसलिए जलने की चोट और घरेलू हिंसा का संबंध साफ़ तौर पर साबित होता है। गृहिणियों की सुरक्षा के लिए जरूरी है हम महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य को नजरअंदाज़ न करें।

महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा को न सिर्फ रोकना होगा बल्कि इसकी जिम्मेदारी सरकार, समाज और परिवार को उठानी होगी। न्यायिक प्रणाली से लेकर पुलिस और स्वास्थ्य से लेकर सामाजिक संस्थानों तक सभी को पितृसत्तात्मक नज़रिए को छोड़ सही शिक्षा से जागरूकता और संवेदनशीलता विकसित करना होगा। आत्महत्या से मौत की शिकार होती महिलाओं के सुरक्षा के लिए हम महिलाओं को उत्तरदायी नहीं ठहरा सकते। इसके लिए हमें जमीनी स्तर पर सामूहिक लड़ाई लड़नी पड़ेगी। आत्महत्या से होनेवाली इन मौतों के कारकों को चिन्हित करना होगा।

Related Posts

MP: महिलाओं को दी गई ग्राम पंचायतों की बड़ी जिम्मेदारी, अब बदलेगी गांवों की तस्वीर
महिलाएं एवं बच्चे

MP: महिलाओं को दी गई ग्राम पंचायतों की बड़ी जिम्मेदारी, अब बदलेगी गांवों की तस्वीर

September 18, 2023
MP News: दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी छोटे से गांव की ये महिला किसान
महिलाएं एवं बच्चे

MP News: दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी छोटे से गांव की ये महिला किसान

September 18, 2023
मध्यप्रदेश में आँगनवाड़ी में पोषण-मटके की ‘टिम्बक टू’
महिलाएं एवं बच्चे

मध्यप्रदेश में आँगनवाड़ी में पोषण-मटके की ‘टिम्बक टू’

September 16, 2023
Ladli Bahna Yojana: मिल गई बड़ी खुशखबरी, अब इनके खाते में भी हर महीने पैसे भेजेगी सरकार; जानें कैसे
महिलाएं एवं बच्चे

लाड़ली बहनों को मिलेगा 450 रुपए में गैस सिलेंडर

September 15, 2023
लाड़ली बहना योजना से महिलाओं के जीवन में आया बदलाव : मुख्यमंत्री श्री चौहान
महिलाएं एवं बच्चे

लाड़ली बहना योजना से महिलाओं के जीवन में आया बदलाव : मुख्यमंत्री श्री चौहान

September 15, 2023
राज्य ग्रामीण आजाविका मिशन से महिलाएँ पारिवारिक और ग्रामीण स्वावलंबन का जरिया बन रही हैं
महिलाएं एवं बच्चे

राज्य ग्रामीण आजाविका मिशन से महिलाएँ पारिवारिक और ग्रामीण स्वावलंबन का जरिया बन रही हैं

September 14, 2023
Next Post
परवरिश के सारे सवाल हमेशा महिलाओं से क्यों ?

परवरिश के सारे सवाल हमेशा महिलाओं से क्यों ?

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

November 2023
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
27282930  
« Oct    
Ias coaching and UPSC coaching

Our Visitor

0 1 0 9 1 0

Recent News

नवरात्रों एवं रामायण के पात्रों का बस्ती के बच्चों को  ऐतिहासिक महत्व बताया

नवरात्रों एवं रामायण के पात्रों का बस्ती के बच्चों को  ऐतिहासिक महत्व बताया

October 5, 2023
शिविर में बताया आत्मरक्षा का महत्व

शिविर में बताया आत्मरक्षा का महत्व

October 5, 2023
मध्यप्रदेश के इस गांव में पानी को तरसते लोग, जान जोखिम में डालकर कुएं में उतर रहीं महिलाएं

मध्यप्रदेश के इस गांव में पानी को तरसते लोग, जान जोखिम में डालकर कुएं में उतर रहीं महिलाएं

October 1, 2023

Most Viewed

नवरात्रों एवं रामायण के पात्रों का बस्ती के बच्चों को  ऐतिहासिक महत्व बताया

नवरात्रों एवं रामायण के पात्रों का बस्ती के बच्चों को  ऐतिहासिक महत्व बताया

October 5, 2023
शिविर में बताया आत्मरक्षा का महत्व

शिविर में बताया आत्मरक्षा का महत्व

October 5, 2023
मध्यप्रदेश के इस गांव में पानी को तरसते लोग, जान जोखिम में डालकर कुएं में उतर रहीं महिलाएं

मध्यप्रदेश के इस गांव में पानी को तरसते लोग, जान जोखिम में डालकर कुएं में उतर रहीं महिलाएं

October 1, 2023
  • Home
  • About Us
  • Contact us
  • Privacy Policy

Copyright © 2022 lokvikasindia. All rights reserved. | Designed by Website development company - Traffic Tail

No Result
View All Result
  • Homepages
    • मुखाये समाचार
    • और खबरे
  • uncategorized

Copyright © 2022 lokvikasindia. All rights reserved. | Designed by Website development company - Traffic Tail