प्रशांत रायचौधरी
चंद्रकांत पंडित ने मध्यप्रदेश को घरेलू क्रिकेट का नया बादशाह बना दिया। वे व पूरी टीम बधाई की पात्र है। प्रोफेशनल कोच का फायदा क्या होता है यह हमने देखा। पंडित हेड कोच के रूप में मुंबई को तीन बार (2003,2004,2016) ,विदर्भ को दो बार (2018,2019) व मध्यप्रदेश को एक बार (2022) जीताने में सफल रहे। पंडित की इस सफलता की नींव दरअसल संदीप पाटिल ने रखी थी। पाटिल मध्यप्रदेश से जुड़ने के बाद टीम को बहुत आगे ले गए थे। पंडित का नाम संदीप पाटिल ने ही सुझाया था। पंडित ने संदीप पाटिल के अधूरे काम को पूरा किया। पाटिल भी खिलाड़ियों को सख्त अनुशासन में रखते थे,पंडित भी उन्हीं के पदचिन्हों पर चले। अब लगता है कि पंडित को इंडिया-ए का का कोच बना दिया जाएगा।
23 साल बाद टूटा हुआ सपना पूरा हुआ
ये उनका कोचिंग करियर था जिसके चलते उनको एक खिलाड़ी से ज्यादा चर्चे मिले। 138 फर्स्ट क्लास मैच खेलने वाले पंडित ने जिस तरह से विदर्भ और अब मध्यप्रदेश को जिताया है उसके बाद घरेलू क्रिकेट में उनका दर्जा और बढ़ने वाला है क्योंकि यह दोनों ही टीमें बहुत मजबूत नहीं मानी जाती थी। 1999 में मध्य प्रदेश की टीम चंद्रकांत पंडित की कप्तानी में ही फाइनल में पहुंची थी लेकिन तब कर्नाटक ने उसको हरा दिया था और अब 23 साल बाद टूटा हुआ वह सपना फिर से पूरा हुआ।
बड़े खड़ूस कोच हैं
चंद्रकांत पंडित के तौर तरीकों से वाकिफ लोग बताते हैं कि वह एक सख्त कोच हैं जो अपनी टीम में अनुशासन को बहुत महत्व देते हैं। वे कप्तान या किसी खिलाड़ी से भी ऊपर टीम के माहौल को तवज्जो देते हैं। यही वजह है जब वे विदर्भ के कोच थे तो उन्होंने एक सेमीफाइनल मुकाबले के दौरान अपने खिलाड़ियों का फोन खुद के पास रख लिया था। उनका मानना था कि महत्वपूर्ण समय में फोन जैसी चीजें खिलाड़ियों का ध्यान बंद कर सकती है।
नतीजा फिर वही देते हैं जिसकी आप उनसे उम्मीद करें
बताया जाता है कि चंद्रकांत पंडित के काम करने का तौर तरीका एसोसिएशन भी जानती हैं इसी वजह से वे उनको टीम को चुनने की पूरी छूट देती हैं, बतौर कोच फ्री हैंड देती है। जब ऐसा कोई कोच होता है तो उसके इर्द-गिर्द अफवाहों का दौर भी चल पड़ता है। कहने वाले कहते हैं कि पंडित ने अपने कोचिंग करियर में गुस्से में आकर एक खिलाड़ी पर हाथ भी उठा दिया था लेकिन इस बात की पुष्टि नहीं है कि यह बात सच है। पर एक बात तो सच है कि पंडित अपने तरीके से काम करते हैं लेकिन नतीजा फिर वही देते हैं जिसकी आप उनसे उम्मीद करें।
जीत के बाद भावुक क्यूं हो गए थे
इस जीत के बाद चंद्रकांत पंडित काफी भावुक हो गए और उन्होंने बताया कि 23 साल पहले एक कप्तान के तौर पर वे इस मैदान पर बाजी मारने में नाकामयाब रहे थे, इस वजह से भावनाएं कुछ ज्यादा ही उमड़ गई। चंद्रकांत पंडित की घरेलू क्रिकेट में काफी मांग है और वह कहते हैं कि बाकी ऑफर भी उनके पास थे लेकिन उन्होंने मध्यप्रदेश को चुना क्योंकि 23 साल पहले जो छूटा था उसको पूरा करने का मौका मिल रहा था। उन्होंने भोपाल के आदित्य श्रीवास्तव को एक बेहतरीन कप्तान बताया और कहा कि जो भी चीजें उन्होंने कप्तान के साथ मिलकर बनाई उसने उनको मैदान पर लागू किया। वे कहते हैं कि कप्तान अपनी टीम की जीत में 50% का योगदान दे सकता है और यहां पर आदित्य ने शानदार काम किया है, भले ही वह अपने बल्ले से अधिक रन नहीं बना पाए। चंद्रकांत कहते हैं कि उन्होंने यह ट्रॉफी मध्य प्रदेश के लिए जीती है। इस दौरान उन्होंने मध्यप्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन और माधवराव सिंधिया को धन्यवाद दिया।