राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षा आयोग ने देशभर के स्कूलों में प्रवेश की प्रक्रिया, शिक्षा का अधिकार अधिनियम- 2009 के अनुरूप सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसकी आवश्यकता इसलिए महसूस की गई कि कुछ राज्यों में स्कूलों में बच्चों को पूर्व-प्राथमिक स्कूलों में नामांकन हेतु स्क्रीनिंग की जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है वह इस अधिनियम के तहत प्रतिबंधित है। अप्रैल 2010 में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षा आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर यह मांग की कि सरकारी आदेश जारी कर स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया के लिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का पालन किया जाए। इसकी पहल मार्च में शिक्षा निदेशालय, दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार द्वारा एक सूचना जारी करने पर हुई जिसमें निदेशालय द्वारा चलाए जा रहे संस्थान राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालयों में कक्षा छह में दाखिला के लिए आवेदन मांगा गया था।
अप्रैल माह में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षा आयोग के हस्तक्षेप से शिक्षा निदेशालय, दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र द्वारा सभी प्रमुख समाचारपत्रों में तथा निदेशालय की वेबसाइट पर एक प्रवेश सूचना जारी की गई, जिसमें छात्रों से 25 रुपये में नामांकन आवेदन पत्र खरीदने तथा उसके बाद एक प्रवेश जाँच में बैठने की माँग की गई। चूंकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम किसी भी प्रकार की प्रवेश जाँच को प्रतिबंधित करता है तथा स्कूलों में तत्समय (पहले आओ, पहले पाओ) के आधार पर चयन पर जोर देता है, इसलिए इसे उस सूचना को अधिनियम का उल्लंघन माना गया।
शिका का अधिकार अधिनियम की निगरानी तथा क्रियान्वयन के नोडल निकाय के रूप में आयोग ने शिक्षा निदेशालय, दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रधान सचिव, शिक्षा को एक पत्र लिखा जिसमें उस सूचना को वापस लेने के लिए कहा गया तथा उसके स्थान पर शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को जारी करने का निर्देश दिया। यह भी मांग की गई कि एक सप्ताह के भीतर सरकार शिक्षा निदेशालय, दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के भीतर आने वाले सभी स्कूलों को अपने प्रवेश में शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के आदेश दें, ताकि स्कूल अपनी प्रक्रियाओं में आवश्यक फ़ेर-बदल कर सके।
चूंकि निदेशालय ने इस माँग के अनुरूप कार्य नहीं किया, उसे जून में आयोग की ओर से सम्मन जारी किया गया और जुलाई तक की मोहलत दी गई कि प्रवेश प्रक्रिया को पुनः शिक्षा के अधिकार प्रावधानों के अनुसार संपन्न किया जाए।
यह सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम का अन्य राज्यों में भी उल्लंघन न किया जाए, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षा आयोग ने सभी प्रमुख सचिवों को अपने पत्र में सरकारी आदेशों द्वारा सभी स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया के लिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम को लागू करने की मांग की। पत्र में निम्नलिखित माँग रखी गई:
- प्रवेश प्रक्रियाएँ शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुरूप हों,
- सभी ‘विशेष वर्गों’ के स्कूलों तथा बिना सहायता वाले निजी स्कूलों में कमजोर वर्गों के लिए 25 प्रतिशत सीटों का आरक्षण सुनिश्चित किया जाए तथा सरकारी सहायता प्राप्त सभी स्कूलों में आरक्षण के नियमों का पालन किया जाए।
साथ ही, सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त निज़ी स्कूलों को इस अधिनियम के प्रावधानों तथा प्रक्रियाओं के बारे में रूप-रेखा तैयार कर नोटिस जारी करनी चाहिए ताकि आस-पास के बच्चे स्कूल में दाखिला ले सकें। साथ ही, शिक्षा के अधिकार अधिनियम पर राज्य के नियमों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया शीघ्र पूरी की जानी चाहिए।
नवोदय स्कूल के बारे में पूछे जाने पर, जिन्हें इस अधिनियम में ‘विशेष वर्ग’ का दर्जा दिया गया है, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षा आयोग ने उल्ल्ख किया कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के भाग-13 के प्रावधान सभी स्कूलों पर लागू होंगे और इसके लिए कोई अपवाद नहीं होगा।
अधिनियम के भाग-13 का प्रासंगिक प्रावधान
“प्रवेश लेने के दौरान कोई व्यक्ति या स्कूल किसी प्रकार का शुल्क या किसी बच्चे अथवा उसके माता-पिता या अभिभावक से किसी प्रकार की जांच नहीं ले सकता।
कोई स्कूल या व्यक्ति सब-सेक्शन (1) का उल्लंघन करते हुए,
- कोई प्रवेश शुल्क प्राप्त करता है, तो उस उल्लंघन के लिए उसपर ज़ुर्माना लगाया जा सकता है, जो माँगे जाने वाले शुल्क का 10 गुना होगा,
- जो स्कूल बच्चे की जाँच लेता है तो उसपर 25,000 रुपये प्रथम उल्लंघन के लिए तथा 50,000 रुपये द्वितीय उल्लंघन के लिए ज़ुर्माना लगाया जाएगा।”
स्रोतः : राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षा आयोग