सामाजिक मुद्दा:
पिछले दिनों देवास जिले के कन्नौद, सतवास , खातेगांव में सरकारी- ग़ैर सरकारी संस्थाओं द्वारा परामर्श केंद्र में स्व आत्मनिर्भरता संज्ञान से संबंधित दो दिवसीय प्रशिक्षण एवं सूचना शिविर आयोजित किए गए थे । इन शिविरों का कितना लाभ गाँव की महिलाओं को मिला एवं महिलाएँ जानकारी एवं सूचना से कितना अवगत हुईं लोक विकास इंडिया डॉट कॉम ने वहाँ की महिलाओं से बातचीत की —

खातेगांव की जशोदा खीरी को इतना समझ में आया कि खुद कमाएँगी तो पति की रोज़ की पिटाई से बच सकती हैं और अपने दोनों बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा सकती है । शिविर में आए प्रतिनिधियों ने उनसे कहा कि वे घर में रहकर मसाला कूटने का , पापड़ , बड़ी बनाना शुरू कर दें तो इससे उनकी आमदनी होगी । जशोदा अपने पति के साथ फसल कटाई का काम करती हैं लेकिन कमाई बहुत ही कम होती है। कभी-कभी तो भरपेट खाना भी नहीं खा पाते पति- पत्नी । जशोदा को ये समझ में आ गया है कि फसल कटाई का काम तो छोड़ना पड़ेगा ।

वहीं कन्नौद में बिटोरी अपने पति भायादास के साथ शिविर में गई थी। बिटोरी पाँचवीं तक पढ़ी हैं । भायादास आठवीं तक पढ़े हैं । दोनों काग़ज़ों पर साइन करना अच्छे से जानते हैं । बिटोरी बिंदी बनाने और पर्स सिलने का काम करती हैं ।पति इंदौर के थोक बाज़ार से काम लाते हैं । घर में मशीन है जो बहुत पूरानी हो गई है । बार बार ख़राब होती है। शिविर में उनसे कहा है कि नई मशीन ख़रीदने के लिए सरकार उनकी मदद करेगी। दोनों इसी इंतज़ार में हैं कि जल्दी से जल्दी नई मशीन आ जाए तो ज़्यादा से ज़्यादा काम लेने लगेंगे ।
निष्कर्ष:
इस क्षेत्र के लोगों से बात करने पर यह निष्कर्ष निकला कि ग्रामीण क्षेत्रों में योग्य लोगों की कमी है। योग्यता की कमी होने के कारण इन स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को प्रशिक्षण ठीक से नहीं मिल पाता, इसके अलावा क्षमता निर्माण और कौशल प्रशिक्षण के लिए संस्थागत तंत्र का अभाव है।
इसके साथ ही ग्रामीण स्तर पर लोगों में इसके प्रति जागरूकता की कमी है क्योंकि स्वयं सहायता समूहों में काम करने वाली महिलाएँ अधिकतर अशिक्षित होती हैं।
एक और प्रमुख मुद्दा है ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों की कमी होने के कारण, स्वयं सहायता समूहों के द्वारा तैयार माल को बाजार तक पहुँचाने में कठिनाई होती है।