संध्या रायचौधरी –
इंदौर में बायपास के पास स्कीम नं 140 में हर हफ़्ते हाट लगाई जाती है जिसमें दूर दराज़ से बड़ी संख्या में महिलाएँ विभिन्न वस्तुओं को बेचने के लिए आती हैं। लेकिन सबसे ज़्यादा संख्या सब्ज़ी बेचने वाली महिलाओं की रहती है। कई महिलाएँ बीस सालों से सब्ज़ी बेच कर जीवनयापन कर रही हैं तो कई ऐसी महिलाएँ हैं जो आसपास के गाँवों क़स्बों से हर दिन इंदौर में जगह जगह लगने वाले हाटों में आती हैं। कोई अपने परिवार के साथ तो कोई अकेले ही सब्ज़ी आदि बेचने की दुकान लगाती हैं।जो तोड़ मेहनत करने के बाद भी आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं ।
हाट में ऐसी महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर एक रिपोर्ट-
सब्ज़ी पूरी बिकने पर भी कमाई नहीं

धार के पास एक गाँव अहीरखेड़ी से गणेशी बाही 17 सालों से सिर्फ़ सब्ज़ी बेचने का काम करती हैं। उन्हें ये काम बहुत पसंद है क्योंकि इसमें ग्राहक खुद उनके पास आता है और प्रतिदिन पूरी सब्ज़ी बिक जाती है। लेकिन उनका कहना है इससे कमाई बहुत ज़्यादा नहीं होती है , कई बार जिन किसानों के खेत से सब्ज़ी लेती हैं वे ही ज़्यादा दाम में देते हैं तो मंहगी सब्ज़ी ख़रीदने में ग्राहक पीछे हट जाते हैं । गणेशी का कहना है उनके गाँव में कमाने की ऐसी व्यवस्था हो जाए कि इतनी दूर हाट में न आना पड़े तो अच्छा हो।
ऑफिस का काम करने की इच्छा होती है

रालामंडल के पास बंजारीपुरा से जानकी दसौंधी सिर्फ़ आलू-प्याज़-लहसुन बेचने आती हैं । उनके साथ पति बहू और पोता भी आता है।जानकी बेमन से ये काम करती हैं क्योंकि इसमें बहुत मेहनत लगती है। ज़मीन पर बैठकर आलू- प्याज़ तौलते हुए कमर दुखने लगती है। वे कहती हैं मजबूरी है काम करने की । स्कूल में माता-पिता ने पढ़ाया होता तो ऑफिस का काम करती कुर्सी टेबल मिलती काम के लिए और इज़्ज़त भी मिलती। जानकी का कहना है ज़्यादा बारिश होती है तो गाँव में सड़क का बुरा हाल हो जाता है , हाट में आने में बहुत परेशानी होती है।
योजनाओं से फ़ायदा है लेकिन जीवन स्तर बहुत अच्छा नहीं है

ममता बनैती की शादी को नौ साल हुए हैं । वे दसवीं तक पढ़ीं हैं , देवगुराडिया क्षेत्र में एक प्राथमिक स्कूल में पढ़ाती थीं । लेकिन बड़ी विपत्ति आ गई पति को लकवा हो गया तो दो महीने स्कूल नहीं जा पाई तो नौकरी चली गई। गाँव की 7-8 महिलाएँ आसपास के क्षेत्रों में लगने वाले हाट- बाज़ार में आती थीं तो ममता ने भी आना शुरू कर दिया। पति बिस्तर पर है दो बच्चे हैं उन्हें घर पर पढ़ाती हैं। वे बड़ी सुलझे ढंग से बात करती हैं । सरकार की कुछ योजनाओं से लाभ तो मिलता है लेकिन उससे जीवन स्तर बहुत अच्छा नहीं हो सकता है यह कहना है ममता का।