पुराना संसद भवन अब इतिहास हो जाएगा, ऐसा इतिहास जो भारत के नव निर्माण का गवाह है. 1927 में यह इमारत बनकर तैयार हुई थी. इसका निर्माण अंग्रेजों ने प्रशासिनक भवन के तौर पर कराया था. उस वक्त इसके निर्माण पर 83 लाख रुपये खर्च हुए थे. खास बात ये है कि उस समय दस ग्राम सोना महज 18 रुपये में मिल जाता था.
पीएम मोदी ने पुराने संसद भवन को औपचारिक विदाई दे दी. 18 सितंबर को संसद के विशेष सत्र के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू से लेकर पूर्व पीएम नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेयी तक का जिक्र किया. पीएम ने कहा कि- ‘सदन ने देश को आगे बढ़ाने वाले फैसले लिए’. पीएम के संबोधन के साथ ही ये तय हो गया कि दुनिया भर में नायाब आर्किटेक्चर का उदारहण हमारी संसद का ऐतिहासिक भवन एक इतिहास हो जाएगा. ऐसा इतिहास जो न जाने कितने ही ऐसे पलों का गवाह है जिससे भारत का नवनिर्माण हुआ.
दिल्ली के लुटियन जोन में यह इमारत 96 साल पहले 1927 में बनकर तैयार हुई थी. इसका निर्माण अंग्रेजों ने देश चलाने के लिए एक प्रशासनिक भवन के तौर पर कराया था. बाद में ये केंद्रीय असेंबली बनी. वही केंद्रीय असेंबली जिसमें हुए धमाके से अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिलीं. देश की आजादी के बाद यही केंद्रीय असेंबली संसद बनी और भारत की नई इबारत लिखी.
तब 18.37 रुपये का मिलता था दस ग्राम सोना
देश की राजधानी कोलकाता हुआ करती थी, ब्रिटिश महाराज जॉर्ज पंचम ने 1911 में दिल्ली को राजधानी बनाया. यहां ऐसी कोई इमारत नहीं थी जिससे देश का प्रशासनिक कामकाज हो सके. तय हुआ कि प्रशासनिक भवन बनाया जाएगा. आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ओर हर्बर्ट बेकर ने दिल्ली को डिजाइन किया, 1921 में पुरानी संसद भवन का निर्माण शुरू हुआ जो 1927 में पूरा हुआ. उस वक्त उस भवन को बनाने में तकरीबन 83 लाख रुपये खर्च किए गए थे, ये वो दौर था जब सोने की कीमत बेहद कम हुआ करती थी. टैक्स गुरु वेबसाइट के मुताबिक 1927 में 18.37 रुपये में दस ग्राम सोना मिल जाया करता था.