भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 में व्यवस्था दी गई है कि मानव तस्करी व बाल श्रम के अलावा 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों और जोखिम भरे कायरे में न लगाया जाए।
बच्चे राष्ट्र की संपत्ति और भविष्य होते हैं। देश की सर्वोच्च अदालत को उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर लगातार चिंता जतानी पड़ रही है। सरकार के आंकड़े बताते हैं कि विगत तीन वर्षो में तकरीबन दो लाख से अधिक बच्चे लापता हुए हैं जिनमें से अधिकतर बच्चों का इस्तेमाल बाल मजदूरी और देह व्यापार जैसे धंधों में किया जा रहा है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का भी कहना है कि देश में हर साल चालीस हजार से अधिक बच्चे गुम होते हैं जिनमें से अधिकांश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। यह सही है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बच्चों के यौन शोषण पर रोक लगाने से संबंधित एक विधेयक को मंजूरी दे दी है। लेकिन कानून बनाने के साथ उसका अनुपालन होना ज्यादा जरूरी है। अगर कानूनी दंड के भय से सामाजिक बुराइयों और आपराधिक कृत्यों पर लगाम लगती तो बालश्रम कानून लागू होने के बाद बच्चों पर होने वाले अत्याचार रुक जाते। अभी पिछले दिनों ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने बाल मजदूरी को लेकर सख्त नाराजगी जताते हुए दिल्ली सरकार, दिल्ली पुलिस और श्रम विभाग को ताकीद किया है कि बाल मजदूरी से जुड़ी शिकायतों पर 24 घंटे के भीतर कार्रवाई हो और बचाए गए बच्चों को मुआवजा देने और उनके पुनर्वास का काम 45 दिनों में सुनिश्चित हो। यह पहली बार नहीं है जब न्यायालय ने बाल मजदूरी को लेकर सख्त रुख अपनाया हो। 2019 में भी एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार को कड़े निर्देश दिए थे कि बाल मजदूरी रोकने के लिए ठोस प्रयास किए जाएं। देश में बाल श्रमिकों की तादाद बढ़ती जा रही है। राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो की रिपोर्ट भी बच्चों पर हो रहे अत्याचार का सच बयान करती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 में व्यवस्था दी गई है कि मानव तस्करी व बाल श्रम के अलावा 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों और जोखिम भरे कायरे में न लगाया जाए। 1976 का बंधुआ मजदूरी उन्मूलन एक्ट भी बच्चों को संरक्षण प्रदान करता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी स्वीकार चुका है कि उसके पास बालश्रम के हजारों मामले दर्ज हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक दुनिया भर में तकरीबन बीस करोड़ से अधिक बच्चे जोखिम भरे कार्य करते हैं और उनमें सर्वाधिक संख्या भारतीय बच्चों की है। सरकार के अलावा समाज और स्वयंसेवी संस्थाओं की भी जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए आगे आएं। सिर्फ सरकार पर बच्चों की जिम्मेदारी थोपकर निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता। बच्चों की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए संपूर्ण समाज को संवेदनशील होना पड़ेगा। समझना होगा कि राष्ट्र की संरचना में सरकार से ज्यादा समाज की भूमिका होती है।
गेहूँ